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वॉशिंगटन में दुनिया के भविष्य पर मंथन: कर्ज़, क्लाइमेट, और राजनीति एक मेज़ पर

Posted on October 13, 2025

वॉशिंगटन डी.सी. में इस हफ्ते (13 से 18 अक्टूबर) कुछ बड़े फैसले होने वाले हैं।
यह वो जगह है जहाँ हर साल दुनिया की अर्थव्यवस्था का रास्ता तय होता है-World Bank और IMF की सालाना बैठकें।

लेकिन इस बार माहौल कुछ और है।

पृष्ठभूमि में उभर रहे हैं कई सवाल:
क्या अमीर देश अपने कर्ज़ के जाल में फंसे गरीब देशों को राहत देंगे?
क्या जलवायु परियोजनाओं में निवेश जारी रहेगा या राजनीतिक दबाव के आगे रुक जाएगा?
और क्या वो 1.3 ट्रिलियन डॉलर की सालाना क्लाइमेट फाइनेंस डील, जिस पर दुनिया ने पिछले साल बाकू में भरोसा किया था, अब हकीकत बन पाएगी?

एक नई दौड़, एक पुरानी सियासी लड़ाई

इस साल Multilateral Development Banks (MDBs) यानी बहुपक्षीय विकास बैंकों ने रिकॉर्ड $137 बिलियन की क्लाइमेट फाइनेंस दी-जिसमें से $85 बिलियन निचले और मध्यम आय वाले देशों को गया।
यह आंकड़ा सुनने में सूखा लग सकता है, लेकिन यह बताता है कि दुनिया अब “बदलाव की अर्थव्यवस्था” में कदम रख चुकी है।
Inter-American Development Bank ने अकेले $11 बिलियन अनलॉक करने के नए टूल लॉन्च किए हैं,
EBRD और AIIB ने जलवायु को शीर्ष प्राथमिकता बनाया है,
और New Development Bank (BRICS बैंक) ने पहली बार क्लाइमेट फाइनेंस को अपने मिशन का केंद्र बनाया है।

पर इसी बीच, वर्ल्ड बैंक और IMF के भीतर राजनीति गरम है।
अमेरिका की नई ट्रंप-समर्थक टीम इन संस्थाओं से कह रही है-फॉसिल प्रोजेक्ट्स को मत भूलो।
उनकी नज़र “गैस और न्यूक्लियर” को फिर से एनर्जी मिक्स में शामिल करने पर है।
दूसरी तरफ़ यूरोप और ब्रिटेन जैसे शेयरहोल्डर्स वर्ल्ड बैंक को उसके क्लाइमेट मिशन पर टिके रहने का आग्रह कर रहे हैं।

IMF के भीतर भी हलचल है।
ट्रंप प्रशासन के पूर्व अधिकारी डेनियल कैट्ज़ अब IMF के डिप्टी डायरेक्टर हैं, और उन्होंने साफ कहा है कि “क्लाइमेट, जेंडर, और सोशल एजेंडा” पर इतना ज़ोर देना ज़रूरी नहीं।
यानी, संस्थागत सुधार की आड़ में क्लाइमेट एजेंडा को पीछे धकेलने की कोशिशें भी जारी हैं।

1.3 ट्रिलियन डॉलर का सवाल

15 अक्टूबर को जी20 फाइनेंस मंत्रियों की मीटिंग के दौरान Circle of Finance Ministers Report जारी होगा-
यही रिपोर्ट “Baku-to-Belém Roadmap” का आधार बनेगी, जो 27 अक्टूबर को आने वाली है।
इस रोडमैप में तय होगा कि देश मिलकर कैसे हर साल 1.3 ट्रिलियन डॉलर जुटाएँगे, ताकि COP29 में किए वादे पूरे हों।
Inter-American Development Bank पहले ही इस मॉडल को लैटिन अमेरिका और कैरिबियन में पायलट कर रहा है।

लेकिन असली सवाल यह है कि क्या दुनिया इतनी बड़ी राशि जुटा पाएगी- जबकि कर्ज़, राजनीतिक खींचतान और चुनावी दबाव एक साथ सिर उठा रहे हैं?

कर्ज़ की राजनीति और ग्लोबल साउथ की बेचैनी

Debt Relief इस साल के एजेंडा का दूसरा बड़ा मुद्दा है।
कई अफ्रीकी देशों और उभरती अर्थव्यवस्थाओं ने “Borrowers’ Club” और “African Debt Leaders Initiative” जैसे मंच बनाकर अपनी नाराज़गी जताई है-कहते हैं कि रिफॉर्म्स की रफ्तार बहुत धीमी है।
IMF से अब उम्मीद की जा रही है कि वह इन प्रस्तावों को आगे बढ़ाएगा, लेकिन अमेरिकी दबाव और संस्थागत राजनीति के बीच यह संतुलन आसान नहीं होगा।

14 अक्टूबर को “Sovereign Debt, the Climate Challenge, and Geoeconomics” नाम से एक हाई-लेवल इवेंट होगा, जिसमें अफ्रीका के पूर्व प्रधानमंत्री हैलेमारियम डेसालेन जैसे नेता शामिल होंगे।
यह बातचीत तय करेगी कि आने वाले महीनों में ग्लोबल साउथ अपनी शर्तों पर कितनी मजबूती से खड़ा हो सकता है।

क्लाइमेट फाइनेंस का असली संघर्ष

ये बैठकें हमें याद दिलाती हैं कि जलवायु वित्त केवल पैसे का सवाल नहीं है-यह भरोसे का भी सवाल है।
क्या अमीर देश अपने वादों पर कायम रहेंगे?
क्या गरीब देश बिना नए कर्ज़ के क्लाइमेट एक्शन को आगे बढ़ा पाएंगे?
और क्या वैश्विक बैंकिंग सिस्टम, जो दशकों से पुराने ढर्रे पर चलता आया है, अब जलवायु युग के लिए खुद को नया रूप दे पाएगा?

कहानी का सार
वॉशिंगटन की इन मीटिंग्स में जो कुछ तय होगा, वो केवल वित्तीय नीति नहीं, बल्कि ग्रह का भविष्य तय करेगा। कर्ज़ और क्लाइमेट के बीच की यह रस्साकशी बताती है-हमारी लड़ाई सिर्फ़ कार्बन कम करने की नहीं,
बल्कि भरोसा लौटाने की है।

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