आजकल आयल और गैस के क्षेत्र में एक नया ट्रेंड जोर पकड़ रहा है। और ये है कार्बन न्यूट्रल एलएनजी का। शेल और गैज़प्रोम जैसी कम्पनियों ने यूरोप में पहला कार्बन न्यूट्रल एलएनजी कार्गो बेचने का दावा भी किया है। उधर जापान में 15 गैस खरीदारों ने इस ईंधन की खरीद को बढ़ावा देने के लिए कार्बन न्यूट्रल एलएनजी अलायंस भी बना लिया।
तो इस तरह के माहौल में हमारे लिए अब यह जानना बहुत ज़रूरी हो जाता है कि आखिर ये कार्बन न्यूट्रल एलएनजी है क्या बला और हमें इस इंडस्ट्री के उभरने पर चिंतित क्यों होना चाहिए।
तो चलिए जान लेते हैं सबसे पहले कि ये कार्बन न्यूट्रल एलएनजी है क्या।
दुनिया भर में, एलएनजी या लिक्विफाइड नेचुरल गैस को तेल या कोयले के मुकाबले में कम कार्बन वाला ईंधन का विकल्प माना गया है।
लेकिन कार्बन एमिशन की परिभाषा के अनुसार, एलएनजी भी कोयले की तरह ही कार्बन उत्सर्जन कर सकता है। एलएनजी बनाने की प्रक्रिया के हर चरण में कार्बन एमिशन होता हैं। लिक्विफैक्शन से लेकर ट्रांसपोर्टेशन तक और रीगैसिफिकेशन में और LNG जलने पर भी।
एलएनजी में सबसे मुख्य हिस्सा मीथेन गैस है, और मीथेन गैस एक प्रमुख ग्रीनहाउस गैस है जो कि पहले 20 वर्षों के दौरान वातावरण में जो कार्बन था उसके मुकाबले जलवायु को गर्म करने में इसका 90 फ़ीसद से भी अधिक हिस्सा रहता है।
कार्बन न्यूट्रल एलएनजी का मतलब यह नहीं कि इसके उत्पादन में कार्बन एमिशन नहीं हुआ। बल्कि इसका मतलब है कि कार्गो से जुड़े कार्बन उत्सर्जन को बराबर किया गया है या छिपाया गया है, सामान्य तौर पर इसकी भरपाई कार्बन क्रेडिट की खरीद के जरिए की जानी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है, यह व्यक्तिगत सौदे के आधार पर निर्भर करती है।
अब सवाल उठता है कि इसमें समस्या क्या है।
इसका जवाब देते हुए पेट्रोलियम इकोनॉमिस्ट मैट स्मिथ बताते हैं, “कार्बन न्यूट्रल एलएनजी ने भले ही कंपनियों के लिए सकारात्मक फ़िज़ा बनाई हो लेकिन यह एमिशन को मापने या ऑफसेट करने का तरीका अव्यवस्थित और विवादित है और इसके बारे में इंडस्ट्री कि कोई आम सहमति भी नहीं है।”
जैसा कि देखा गया है, ग्लोबल स्तर पर कार्बन या मीथेन उत्सर्जन को कैसे मापा या रिपोर्ट किया जाता है, इसका कोई तरीका नहीं है, जिसका अर्थ है कि एमिशन्स एक समान तरीके से मापे नहीं जाते हैं और ये हर व्यक्तिगत सौदे पर निर्भर करता है कि विक्रेता कार्बन मापने के तरीके को किस तरह से परिभाषित करता है।
समझौते के आधार पर अलग अलग तरीके से ओफ़्सेट के आधार पर कार्बन एमिशन की मात्रा घटती बढ़ती रहती है। कुछ मामलों में कार्बन ऑफसेट सिर्फ अपस्ट्रीम कॉम्पोनेन्ट से आता है, जिसका अर्थ है कि यह केवल मामूली सा ऑफसेट है।
NRDC के हान चेन के मुताबिक, उत्सर्जन जो कि पावर प्लांट्स में इस्तेमाल होने वाली गैस और कार्गो के बड़े हिस्से से होता है, वह ऑफसेट नहीं किया जाता है। वहीं ऑक्सफोर्ड इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी स्टडीज के फेलो, जोनाथन स्टर्न के अनुसार, “अगर कंपनियां एलएनजी कार्गो और ऑउटसेट्स दोनों के उत्सर्जन की गणना करने के लिए इस्तेमाल किए गए माप, रिपोर्टिंग और जांच पड़ताल के तरीकों का विवरण नहीं देती हैं, तो यह निश्चित रूप से ग्रीनवॉशिंग के आरोपी कहे जा सकते हैं और इस के लिए जिम्मेदार ठहराए जा सकते है। कैलकुलेशन को कैसे अंजाम दिया जाता है, इसका पूरा ब्योरा इस बात को निर्धारित करने के लिए आवश्यक है कि क्या व्यवसाय समझौता वास्तव में कार्बन न्यूट्रल हैं और क्या कार्गो को तुलनात्मक रूप से देखा गया है कि वे कार्बन न्यूट्रल है।”
अब जान लीजिये एलएनजी ऑफसेट कैसे होता है।
शेल की प्रेस रिलीज में, कार्बन ऑफसेटिंग को इस तरह से परिभाषित किया गया है “ईंधन के उत्पादन, वितरण और उपयोग से बनने वाली कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को प्राकृतिक तरीके से कम करने के तरीके को अपनाया जाये [जैसे: पेड़ लगाने के माध्यम से] या वनों को कटाई से बचाया जाये।”
भले ही शेल ने अपने उत्सर्जन को सख्ती से मापा हो, लेकिन इस विचार का दूसरा वक्तव्य बेहद समस्यात्मक है।
ओफ्सेटिंग गैस कार्बन एमिशन के प्रबंधन का एक अनुचित तरीका है। 2019 में, लगभग 5,500 एलएनजी कार्गो बेचे गए, जिसके ऑफसेट के लिए एलएनजी को एक केवल एक साल के उपयोग के कार्बन एमिशन को बराबर करने के लिए 1.5 बिलियन पेड़ों या इसके बराबर कार्बन क्रेडिट की आवश्यकता होगी । प्रकृति-आधारित कार्बन क्रेडिट के दुरुपयोग होने की आशंका भी अधिक रहती है, और यदि परियोजनाओं को गलत तरीके से पूरा किया जाता है, तो वे वास्तव में वनो की सेहत के लिए ठीक नहीं है और वैश्विक ग्रीन हाउज़ गैसों के उत्सर्जन में वास्तविक रूप से वृद्धि कर सकते हैं।
प्रकृति आधारित समाधान भी मीथेन से उत्सर्जन को कम करने के लिए कुछ नहीं कर सकते क्योंकि ये सिर्फ CO 2 को कम कर सकते हैं। जैसा कि पहले बताया गया है, मीथेन CO 2 की तुलना में जलवायु को गर्म करने के लिहाज से और भी अधिक शक्तिशाली है और एलएनजी में सबसे मुख्य हिस्सा मीथेन गैस है।
यहाँ सवाल बनता है कि क्या कार्बन न्यूट्रल एलएनजी इंडस्ट्री को पेरिस लक्ष्यों के करीब लाने में मदद करता है?
दरअसल यह स्पष्ट नहीं है कि कार्बन न्यूट्रल एलएनजी कार्गो के साथ जुड़े कार्बन ऑफसेट को सरकार पहले से ही नैश्नली डेटरमिन्ड कॉन्ट्रिब्यूशन (NDCs) के लिए योगदान के रूप में गिनती है।
इस पर वुड मिकेंज़ी के विशेषज्ञों का कहना है कि “इसमें कोई संदेह नहीं है कि सकारात्मक सुर्खियां ही सौदों के अधिक संख्या में बढ़ने को प्रेरित कर रही हैं। सिर्फ मामूली प्रीमियम के लिए कंपनियों को उनके ग्रीन क्रेडेंशियल्स के व्यापक कवरेज के साथ पुरस्कृत किया जा रहा है यह एक आसान जीत ही मानी जाएगी।”
उनके अनुसार “LNG, आयल और गैस सेक्टर में सबसे अधिक एमिशन बढ़ाने वाले रिसोर्सेज़ में मानी जाती है। लिक्विफैक्शन प्रक्रिया को चलाने के लिए गैस को जलाया जाता है जिसकी वजह से एमिशन अधिक होता है और CO2 को plant में प्रवेश करने से पहले ही हटाने से वो पर्यावरण में चला जाता है। एशिया LNG खरीदारों में सबसे आगे रहा है और LNG का कार्बन फुटप्रिंट जांच के दायरे में आता है यह समय की मांग है कि कार्बन एमिशन्स का सभी टेंडर्स में ठीक से विवरण होना चाहिए । हम अब दुनिया की पहली कार्बन-न्यूट्रल कार की डिलीवरी भी देख चुके हैं जो एशियाई बाज़ारों तक पहुंच भी चुकी है। कार्बन एमिशन को मापना एक बड़ी चुनौती है, जिसमें कोई समान परिभाषा, कार्यप्रणाली या रिपोर्टिंग स्ट्रक्चर नहीं है। “
यदि ये पहले से ही गिना जा चुका हैं, तो ये सभी सौदे किसी भी तरह से सार्थक नहीं हो सकते क्योंकि ये कार्बन ऑफसेट को किसी तरीके से सही और सार्थक साबित नहीं करते। दूसरे शब्दों में, यह एक पीआर खेल है और कंपनी की व्यापार नीति में एक सार्थक बदलाव नहीं है।
एनेर्जी आस्पेक्ट्स नमक संस्था में लीड एलएनजी विश्लेषक ट्रेवर सिकोर्स्की ने कहा, “एलएनजी सेलर्स या बायर्स को खुद से ओफ्सेटिंग करने से रोकने के लिए कोई नियम नहीं है। शेल का हित या स्वार्थ सभी डाउनस्ट्रीम एमिशन को ऑफसेट करना है – इसलिए वे अब ऐसा कर सकते हैं। इस तरह, ऐसा लगता है कि दो अलग-अलग चीजें एक साथ आ रही है वो भी सिर्फ अनुबंध को चलाने के लिए – और इसे बाद में आसानी से अलग किया जा सकता है। “
सिकोरस्की ने कहा कि इस बात को लेकर अभी भी अस्पष्टता है कि मेजबान सरकारें अपने NDC ट्रेड को किस तरह से एडजेस्ट करेंगी, इस वर्ष COP 26 में इस विषय के हल होने की उम्मीद है।
तो फिर इसमें कोई अच्छा समाचार है?
है, बिलकुल है। और वो ये है कि कार्बन-न्यूट्रल एलएनजी ’की मार्केटिंग से पता चलता है कि एशियाई गैस खरीदारों के बीच हरियाली की लिए समझ या जागरूकता की शुरुआत हो चुकी है, भले ही यह अभी समस्याओं से घिरी हो। यह काफी दिलचस्प है क्योंकि एशिया में अभी तक कोई उत्सर्जन नियम नहीं हैं। विश्लेषक अभी तक इसके कारणों पर सहमत नहीं है, लेकिन यह संदेह है कि यह एशिया में जो कॉरपोरेट्स से जुड़ा है वो ESG कारणों से पर्यावरण के अनुकूल नीतियों को अपनाने की आवश्यकता के बारे में जानता हैं।
लेकिन यही गारंटी का एकमात्र तरीका है कि वातावरण के एमिशन को कम करके 2 डिग्री सेल्सियस तक वार्मिंग को सीमित रखने के लिए एकमात्र तरीका है एलएनजी की खपत को कम करने के लिए ठोस कदमों को उठाना। चूंकि ऑफसेटिंग से केवल कार्बन एमिशन कम होता है और यह इसको शुरू में ही रिलीज होने से नहीं रोकता। गैस व्यापार, उत्पादन और निर्यात का बड़े पैमाने पर योजनाबद्ध विस्तार, हालांकि यह ब्रांडेड है, वैश्विक वातावरण के एमिशन को कम करने के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सार्थक नहीं है ।
क्या ‘कार्बन-न्यूट्रल’ LNG ट्रेडिंग डायनामिक्स को प्रभावित कर सकता है?
इस प्रवृत्ति कि शुरुआत शेयरधारक की बढ़ती रुचि पर निर्भर करता है कि गैस के एमिशन्स के फुटप्रिंट पर पारदर्शिता बढ़े।
यूरोप में नए मीथेन नियम जो यह भी स्पष्ट करेंगे कि इम्पोर्टेड गैस के एक कार्गो में कितनी मीथेन है, इस क्षेत्र में ट्रेडिंग डायनामिक्स को बदल सकते हैं । एक सूत्र के अनुसार, ये चर्चा अभी भी अपने शुरुआती दौर में है, लेकिन सरकार के स्तर पर इस बारे में भी बातचीत चल रही है कि क्या जापान भी यूरोप के एक फैसले के बाद समान नियमों का पालन करेगा ?
यदि गैस कार्गो को एमिशन्स के फुटप्रिंट से भी जोड़ा जाता है, तो कुछ खरीदने के विकल्प जलवायु के दृष्टिकोण से दूसरों की तुलना में अधिक आकर्षक हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, केरोस और बोस्टन कंसल्टिंग के अनुमान के अनुसार, US Permian Basin गैस में रूस से गैस की तुलना में 30 गुना अधिक मीथेन के होने का अनुमान है। इसी तरह Qatari कार्गो अक्सर LNG ट्रेडिंग बेसिन के लिए देश की भौगोलिक निकटता के कारण छोटी दूरी की यात्रा करते हैं
तो अब फर्क क्यों पड़ता है?
बहुत सारे दृष्टिकोण हैं जो हमें वातावरण में उत्सर्जन को कम करके वार्मिंग को 1.5 या 2 डिग्री तक नीचे लाते हैं वे कुछ हद तक NETs पर निर्भर करता हैं। जलवायु में व्यापक रूप से बने रहने वाला तर्क यह है कि NETs अभी भी बड़े पैमाने पर उपलब्ध नहीं हैं और इसलिए हमें उत्सर्जन में कटौती को प्राथमिकता देनी चाहिए और NETs के भरोसे नहीं बैठना चाहिए। यह निश्चित रूप से सच है, लेकिन वैज्ञानिक हमें बता रहे हैं कि हम पेरिस लक्ष्यों को कुछ हद तक NETs के बिना हासिल नहीं कर सकते हैं, जबकि वे इस बात पर भी ज़ोर देते हैं कि अकेले NETs को एक मजबूत रणनीति नहीं माना जा सकता। नगर निगम ध्यान दे रहे हैं (हालांकि यह देखा जाना चाहिए कि वे निवेश के लिए गंभीर हैं, या सिर्फ इन अप्रमाणित तकनीकों का उपयोग करके अस्थिर उत्सर्जन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए ऐसा कर रहे हैं ), जबकि कई जलवायु संगठन इन तकनीकों पर बातचीत में शामिल होने के लिए आशंकित लगते हैं कि ये तकनीक क्या हो सकती है और उन्हें यहाँ उपयोग किया जा सकता है।