Skip to content
Menu
Climate कहानी
  • आइए, आपका स्वागत है!
  • बुनियादी बातें
  • चलिए पढ़ा जाये
  • आपकी कहानी
  • सम्पर्क
  • शब्दकोश
Climate कहानी

…बच सकती थीं वो दस लाख से ज़्यादा जानें

Posted on June 25, 2021

अमूमन सस्ती चीज़ों पर हम ध्यान नहीं देते लेकिन अब क्यूंकि पिछले साल से मौत सस्ती हो गयी है, हम उस पर ध्यान दे रहे हैं। मौत को सस्ता किया है कोविड 19 ने। इतना सस्ता कि महज़ कुछ दिनों में ही लोग बीमार हो कर इस दुनिया को छोड़ चले गये। न इलाज मिला कोई न आख़िरी वक़्त घर परिवार का साथ मिला।

इन्टरनेट पर उपलब्ध विश्वसनीय आंकड़ों के हिसाब से, पिछले साल से अब तक, भारत में लगभग चार लाख लोग कोविड 19 की भेंट चढ़ चुके हैं। ये आंकड़ा कितना सही कितना गलत है इसकी चर्चा फ़िलहाल नहीं होगी। और इन चार लाख मौतों का सोच हमारी रूह फनाह हो जाती है। शायद ही कोई घर हो जिसने अपना कोई दोस्त यार रिश्तेदार न खोया हो। चर्चा जज़बातों की भी नहीं होगी। 

चर्चा इस बात पर होगी कि इनमें से बहुत सी मौतें टाली जा सकती थीं। शायद अगर एहतियात हम बरतते तो स्थिति इतनी भयावह न होती। बदिन्त्ज़ामी वाली बातें तो बाद की बात हैं।  

बात को कोविड से अलग कर मौतों पर लाते हैं। अब पढ़िए असल खबर क्या है मौत के बाज़ार से। दुनिया भर के शोधकर्ताओं के एक समूह ने हाल में नेचर कम्‍युनिकेशन नामक पत्रिका में एक शोध पत्र प्रकाशित कर यह दावा किया है कि वैश्विक स्तर पर जीवाश्म ईंधन दहन को रोककर वर्ष 2017 में 1005000 मौतों को रोका जा सकता था। इनमें आधी से ज्यादा मौतें कोयला दहन से उत्पन्न प्रदूषण के कारण हुई हैं।

क्या ये आंकड़ा आपको हैरान करता है? क्या इन मौतों को टाला जा सकता था? वक़्त है इन सवालों के जवाब तलाशने का। ये मौतें, ज़ाहिर है, कोविड जितनी सस्ती नहीं। इसी वजह से शायद किसी को हैरत नहीं हुई होगी। लेकिन मौत आख़िर मौत होती है। हर ज़िन्दगी कीमती हैं।

अब चलिए इन मौतों की संभावित वजहों पर नज़र डालते हैं।

इस रिपोर्ट में वायु प्रदूषण के स्रोतों और उसके कारण सेहत पर पड़ने वाले प्रभावों का बहुत व्यापक रूप से परीक्षण किया गया है। यह काम न सिर्फ वैश्विक स्तर पर बल्कि 200 से ज्यादा देशों तथा उप राष्ट्रीय क्षेत्रों में व्यक्तिगत स्तर पर भी किया गया है। 

कोयले के दहन के साथ प्रदूषण के अन्य प्रमुख वैश्विक स्रोतों में आवासीय क्षेत्र (0.74 मिलियन मौतें, पीएम2.5 का 19.2% बोझ), औद्योगिक क्षेत्र (0.45 मिलियन मौतें, पीएम2.5 का 11.7% बोझ) और ऊर्जा क्षेत्र (0.39 मिलियन मौतें, पीएम2.5 का 10.2% बोझ) शामिल हैं। वातावरणीय पीएम2.5 मृत्यु दर बोझ में भारत और चीन की हिस्सेदारी 58% है, लिहाजा इन दोनों देशों में कुल मिलाकर वायु प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों की संख्या सबसे ज्यादा है।

अपनी प्रतिक्रिया देते हुए यूनिवर्सिटी आफ ब्रिटिश कोलंबिया के स्कूल ऑफ पॉपुलेशन एंड पब्लिक हेल्थ में प्रोफेसर और इस अध्ययन रिपोर्ट के मुख्य लेखक डॉक्टर मिशाइल भावा कहते हैं, ‘‘हम पिछले कुछ समय से यह बात जान गए हैं कि वायु प्रदूषण की वजह से बड़ी संख्या में लोगों की मौत होती है। यह अध्ययन दुनिया के उन विभिन्न देशों के लिए एक प्रारंभ बिंदु भी मुहैया कराता है, जिन्हें स्वास्थ्य संबंधी चिंता के तौर पर वायु प्रदूषण का समाधान निकालना अभी बाकी है।

इस अध्‍ययन के मुताबिक वर्ष 2017 में वैश्विक स्‍तर पर पीएम2.5 का औसत 41.7 μg/m3 था और दुनिया की 91 फीसद आबादी विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन द्वारा निर्धारित 10 μg/m3 की सालाना औसत से कहीं ज्‍यादा सालाना औसत संकेंद्रण का सामना कर रही थी। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 65% से ज्यादा उप राष्ट्रीय क्षेत्रों में पीएम 2.5 का संकेंद्रण उनसे संबंधित राष्ट्रीय औसत से ज्यादा पाया गया। कानपुर और सिंगरौली के आसपास के बेहद प्रदूषित क्षेत्रों में सालाना औसत पीएम 2.5 संकेंद्रण का स्तर 150 μg/m3 तक बढ़ गया जो केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा निर्धारित सुरक्षित सीमा से चार गुना ज्यादा और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तयशुदा ऐसे स्तर से 15 गुना ज्यादा था।

वायु प्रदूषण के कारण सबसे ज्यादा मौतों वाले शीर्ष 9 देशों पर नजर डालें तो चीन में इस तरह की मौतों में कोयला दहन का सबसे बड़ा योगदान है। वहां इसके कारण 315000 मौतें हुई हैं, जो कुल का 22.7 प्रतिशत है। मिस्र, रूस तथा अमेरिका में तेल तथा प्राकृतिक गैस से होने वाला प्रदूषण वहां प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों का सबसे बड़ा जिम्मेदार है। इन देशों में तेल और प्राकृतिक गैस से फैलने वाले प्रदूषण के कारण 27% या 9000 से 13000 मौतें होती हैं। भारत, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, पाकिस्तान और नाइजीरिया में ठोस जीवाश्‍म ईंधन प्रदूषण फैलाने वाला सबसे बड़ा स्रोत है। इन देशों में इसकी वजह से कुल की 36% या ढाई लाख मौतें होती हैं। भारत में प्रमुख प्रदूषणकारी स्रोतों में आवासीय क्षेत्र (25.7%), उद्योग (14.8%), ऊर्जा (12.5%), कृषि (9.4%), कचरा (4.2%) तथा अन्य प्रकार के दहन (3.1) फीसद शामिल हैं।

इस अध्ययन से यह भी साबित होता है कि उप-राष्ट्रीय (सब-नेशनल) स्तर पर प्रदूषण के स्रोतों में अंतर होता है। इसके अलावा अध्ययन में क्षेत्रीय स्तर पर वायु की गुणवत्ता सुधारने संबंधी रणनीतियां तैयार करने के महत्व को भी रेखांकित किया गया है। उदाहरण के तौर पर चीन तथा भारत में घरों से निकलने वाले प्रदूषणकारी तत्व पीएम2.5 के औसत एक्सपोजर तथा उनकी वजह से होने वाली मौतों का सबसे बड़ा स्रोत हैं। बीजिंग तथा सिंगरौली (मध्य प्रदेश, भारत) के आसपास के क्षेत्रों में ऊर्जा तथा उद्योग क्षेत्रों का वायु प्रदूषण में तुलनात्मक रूप से ज्यादा योगदान है, क्योंकि भारत और चीन में पीएम2.5 से जुड़ी मौतों की संख्या सबसे ज्यादा है। लिहाजा इन दो देशों में अगर कोयले, तेल तथा प्राकृतिक गैस के दहन पर पूरी तरह से रोक लगाई जाए तो पीएम2.5 के कारण पूरी दुनिया में होने वाली मौतों के बोझ को तकरीबन 20% तक कम किया जा सकता है। पिछले शोध में यह दिखाया गया है कि चीन में वर्ष 2013 से 2017 के बीच कोयला जलाने से निकलने वाले प्रदूषण में 60% की गिरावट आई थी। वहीं, वर्ष 2015 से 2017 के बीच भारत में प्रदूषण के इन्हीं स्रोतों में 7% तक का इजाफा हुआ था।

सेंट लुइस में वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के विजिटिंग रिसर्च एसोसिएट और इस अध्ययन के प्रथम लेखक डॉक्टर एरिन मैकडफी ने यह स्पष्ट किया कि वायु प्रदूषण से संबंधित सबसे ज्यादा मौतों वाले देशों में इंसान द्वारा बनाए गए प्रदूषणकारी स्रोतों का सबसे ज्यादा योगदान है। ‘‘स्रोत विशेष से होने वाले वायु प्रदूषण के कारण कितनी मौतें हुई? इस अध्ययन में की गई तुलना बेहद महत्वपूर्ण है। खास तौर पर तब, जब हम प्रदूषण के शमन के बारे में सोचते हैं। अंत में उप राष्ट्रीय पैमाने पर स्रोतों पर विचार करना महत्वपूर्ण होगा। विशेष रूप से तब, जब वायु प्रदूषण को कम करने के लिए शमन संबंधी रणनीतियां तैयार की जा रही हों।

बारीक पार्टिकुलेट मैटर के कारण उत्पन्न वायु प्रदूषण के संपर्क में लंबे वक्त तक रहने से पूरी दुनिया में हर साल औसतन 40 लाख लोगों की मौत होती है। इनमें ह्रदय रोग, फेफड़े का कैंसर, फेफड़ों की गंभीर बीमारी, पक्षाघात (स्‍ट्रोक), श्वास नली में संक्रमण तथा टाइप टू डायबिटीज से होने वाली मौतें भी शामिल हैं। इस अध्ययन में इस्तेमाल किए गए विशाल डाटा सेट 20 से ज्यादा व्यक्तिगत प्रदूषण स्रोतों के वैश्विक योगदान का अनुमान लगाने के लिए इस्तेमाल होने वाला पहला डेटा सेट है। इन 20 व्यक्तिगत प्रदूषण स्रोतों में कृषि, परिवहन, ऊर्जा उत्पादन, अपशिष्ट तथा घरेलू बिजली उपयोग जैसे क्षेत्र शामिल हैं। यह विशिष्ट ईंधन जैसे कि ठोस बायोमास, कोयला, तेल तथा प्राकृतिक गैसों को जलाने के कारण उत्पन्न होने वाले प्रदूषण के वैश्विक प्रभावों का आकलन करने के लिए अपनी तरह का पहला अध्ययन भी है।

अब तस्वीर हमारे सामने साफ़ होती दिख रही है। सही नीतिगत फ़ैसले, जीवाश्म ईंधन पर कम निर्भरता, और जन जागरूकता के मिश्रित प्रभाव से इन मौतों को शायद टाला जा सकता था।   

  • air
  • air pollution
  • air quality
  • asthma
  • breathe clean
  • breathe easy
  • carbon dioxide
  • carbon emissions
  • clean energy
  • clean green india

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

क्लाइमेट की कहानी, मेरी ज़बानी

©2025 Climate कहानी | WordPress Theme: EcoCoded