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धरती की बर्फ़ पिघल रही है, लेकिन उम्मीद अब भी जमी है: नई रिपोर्ट ने दी चेतावनी और राह दोनों

Posted on November 7, 2025

दुनिया की बर्फ़ तेज़ी से पिघल रही है। हिमनदों और ध्रुवीय बर्फ़ की चादरों से उठता यह ख़तरा अब किसी दूर के संकट की कहानी नहीं, बल्कि आज की हकीकत है। State of the Cryosphere 2025 रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने चेताया है कि अगर उत्सर्जन मौजूदा रफ्तार से बढ़ते रहे, तो यह बर्फ़ पिघलना अरबों लोगों के लिए विनाश का संकेत बन जाएगा।

रिपोर्ट कहती है कि केवल 1°C की गर्मी पर भी ध्रुवीय बर्फ़ की स्थिरता डगमगाने लगी है, और कई ग्लेशियर इससे भी कम तापमान पर अस्थिर हो रहे हैं।

फिर भी वैज्ञानिक उम्मीद नहीं छोड़ रहे हैं। अगर दुनिया अब से आक्रामक कदम उठाए और उत्सर्जन को तुरंत घटाना शुरू करे, तो तापमान को सदी के अंत तक 1.5°C से नीचे और अगले शताब्दी तक 1°C से कम तक लाया जा सकता है।

यह रिपोर्ट International Cryosphere Climate Initiative (ICCI) ने जारी की है, जिसमें 50 से ज़्यादा अग्रणी वैज्ञानिकों ने पेरिस समझौते के बाद से बर्फ़ के तेज़ पिघलने के नए सबूत रखे हैं।

“हमारे पास वक्त है, लेकिन बहुत कम”

वैज्ञानिकों ने चेताया है कि अगर तापमान 3°C तक बढ़ गया, तो तटीय देशों और द्वीपों में ऐसा समुद्री जलस्तर बढ़ेगा जिसे कोई अनुकूलन नीति रोक नहीं पाएगी।

रिपोर्ट में लिखा है कि “अमेज़न के पास बैठकर जब COP30 पर दुनिया बात करेगी, तब याद रखना चाहिए कि जिस ज़मीन पर यह सम्मेलन हो रहा है, वही ज़मीन कुछ सदियों में समंदर के किनारे बन सकती है।”

डॉ. जेम्स किर्खम, Ambition on Melting Ice (AMI) के प्रमुख वैज्ञानिक, कहते हैं:

 “2025 में प्रकाशित वैज्ञानिक साक्ष्य साफ़ दिखाते हैं कि आज का तापमान भी बर्फ़ को स्थिर रखने के लिए बहुत ज़्यादा है।

अगर हम धरती की बर्फ़ को बचाना चाहते हैं, तो हमें इस सदी में 1.5°C और अगले में 1°C के लक्ष्य तक पहुँचना ही होगा।”

बर्फ़ का पिघलना सिर्फ़ समुद्र का नहीं, इंसान का भी संकट है रिपोर्ट के मुताबिक, 1.2°C की मौजूदा गर्मी भी आने वाले सदियों में कई मीटर समुद्र-स्तर वृद्धि तय कर चुकी है।

यूरोप के आल्प्स, स्कैंडिनेविया, उत्तर अमेरिका के रॉकी पर्वत, और आइसलैंड जैसे इलाकों का आधा हिम आवरण, 1°C तापमान पर भी खत्म हो जाएगा।

अगर तापमान 2°C तक गया, तो यह बर्फ़ लगभग पूरी तरह पिघल जाएगी।

आर्कटिक और अंटार्कटिक दोनों ध्रुवों पर समुद्री बर्फ़ लगातार घट रही है, और फरवरी 2025 में इन दोनों ने अब तक का सबसे न्यूनतम क्षेत्र रिकॉर्ड किया।

समुद्री जल अब इतना अम्लीय (acidic) हो चुका है कि कुछ हिस्सों में सीप, शंख और अन्य समुद्री जीव अब जीवित नहीं रह पा रहे हैं।

रिपोर्ट यह भी बताती है कि पर्माफ्रॉस्ट अब कार्बन का नेट स्रोत बन चुका है, यानी वह कार्बन अवशोषित करने के बजाय वातावरण में छोड़ रहा है।

उम्मीद की किरण: अगर तुरंत कार्रवाई हुई तो अब भी बचाया जा सकता है

रिपोर्ट के साथ Climate Analytics और Potsdam Institute के वैज्ञानिकों ने “Highest Possible Ambition (HPA)” मॉडल जारी किया है, जो दिखाता है कि अगर उत्सर्जन तुरंत और बड़े पैमाने पर घटे, तो तापमान को सदी के भीतर वापस गिराया जा सकता है।

यह रास्ता कठिन है, लेकिन नामुमकिन नहीं।

पैम पियर्सन, ICCI की निदेशक, कहती हैं,

“सबसे अच्छी और सबसे बुरी बात यही है कि यह सारी तबाही टाली जा सकती है। हमारे पास समाधान हैं स्वच्छ ऊर्जा, पुनर्वनीकरण, और कार्बन कैप्चर जैसी तकनीकें। बस अब ज़रूरत है कि हम उनका इस्तेमाल करें, बहाने नहीं।”

बर्फ़ पिघलने के साथ बदलती दुनिया रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका से बहता मीठा पानी और बढ़ती समुद्री गर्मी, महासागरों की धाराओं को धीमा कर रही हैं। इससे उत्तरी यूरोप में अप्रत्याशित ठंड बढ़ सकती है और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र अस्त-व्यस्त हो सकते हैं।

यूके की डॉ. हेलेन फिंडले के शब्दों में, “हमारे ध्रुवीय महासागर अब एक ऐसे बदलाव से गुजर रहे हैं जो हजारों साल तक रहेगा।

इसका असर पूरी धरती पर पड़ेगा, समुद्र से लेकर हवा तक, भोजन से लेकर भविष्य तक।”

कॉप30: बर्फ़ बचाने की आख़िरी पुकार

ब्राज़ील के बेलेम में होने वाला COP30 सम्मेलन अब सिर्फ़ एक राजनीतिक मंच नहीं, बल्कि धरती की ठंडी सांसों की आखिरी पुकार बन गया है।

वैज्ञानिकों ने देशों से कहा है कि वे “भौतिक सच्चाई से मुंह न मोड़ें” और ग्रीनहाउस गैस एमिशन को गहरे, तेज़ और टिकाऊ स्तर पर घटाने का संकल्प लें।

क्योंकि जैसा डॉ. किर्खम ने कहा, “अगर हमने अब भी वक्त गंवाया, तो कुछ सौ सालों में नहीं, कुछ दशकों में ही धरती का नक्शा बदल जाएगा।”

यह रिपोर्ट हमें याद दिलाती है कि जलवायु संकट कोई भविष्य का डर नहीं, बल्कि आज की नंगी सच्चाई है।

और शायद यही वजह है कि वैज्ञानिक कहते हैं, “बर्फ़ पिघल रही है, लेकिन उम्मीद अब भी जमी हुई है।”

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