बारिश अब वैसी नहीं रही जैसी पहले हुआ करती थी।
कभी सूखा पड़ता है, तो कभी आसमान जैसे खुलकर बरस पड़ता है।
भारत में इस साल का मॉनसून भी कुछ ऐसा ही रहा।
45% इलाकों में रिकॉर्ड तोड़ बारिश, और पूरे देश में औसतन 108% वर्षा, यानि “सामान्य से ज़्यादा” मॉनसून।
भारत मौसम विभाग (IMD) के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक 2025 का मॉनसून लगातार दूसरे साल ‘above normal’ रहा।
लेकिन इसके पीछे जो ट्रेंड बन रहा है, वो ज़्यादा अहम है-
बारिश के दिन कम हो रहे हैं, पर जब होती है, तो बहुत ज़्यादा होती है।
कहीं सैलाब, कहीं सूखा – एक ही देश, दो कहानियाँ
इस साल 36 मौसम ज़ोन में से
12 जगहों पर ज़्यादा बारिश,
2 जगहों पर बहुत ज़्यादा,
19 जगहों पर सामान्य,
और सिर्फ़ 3 जगहों पर बारिश कम रही।
उत्तर-पश्चिम भारत सबसे आगे रहा।
यहाँ 27% ज़्यादा बारिश हुई, और लद्दाख में तो औसतन से 342% ज़्यादा।
राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में भी 60 से 70 प्रतिशत तक ज़्यादा पानी बरसा।
गुजरात ने भी अच्छा प्रदर्शन किया। यहाँ 25% ज़्यादा बारिश हुई।
लेकिन पूर्वोत्तर भारत में कहानी उलटी रही।
असम, अरुणाचल और बिहार जैसे राज्यों में
बारिश 20% तक कम दर्ज की गई।
बारिश नहीं, अब ‘एक्सट्रीम इवेंट’ हो गई है
IMD के डेटा बताते हैं कि इस साल मॉनसून के दौरान
2,277 बार भारी या अत्यधिक बारिश हुई।
इन घटनाओं में 1,528 लोगों की जान गई, जिनमें सबसे ज़्यादा मौतें मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में हुईं।
14 में से 18 हफ़्तों में मॉनसून का पानी “अधिक या बहुत अधिक” श्रेणी में रहा।
यानी चार महीने में मुश्किल से कुछ ही दिन ऐसे गए जब देश के किसी हिस्से में भारी बारिश नहीं हुई।
नदियों ने तोड़े रिकॉर्ड
इस बार नदियों ने भी सारे पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए।
देश के 9 नदी बेसिनों में 59 जगहों पर “Highest Flood Level (HFL)” दर्ज किया गया।
सिर्फ़ गंगा बेसिन में ही 32 ऐसी घटनाएँ हुईं, जिनमें 10 यमुना नदी में थीं।
अगस्त 2025 बाढ़ के लिहाज़ से सबसे डरावना महीना साबित हुआ।
कम दिन, ज़्यादा बरसात: मॉनसून का नया चेहरा
पूर्व मौसम महानिदेशक डॉ. के. जे. रमेश का कहना है,
“मॉनसून अब छोटा हुआ है, लेकिन ज़्यादा तीव्र हो गया है। पहले 60 दिन में फैलने वाली बारिश अब 20-25 दिनों में हो रही है।”
मौसम विशेषज्ञ महेश पलावत (Skymet Weather) कहते हैं, “कम दबाव वाले सिस्टम अब ज़्यादा टिकाऊ हो गए हैं। नमी लगातार मिलती रहती है, इसलिए बादल फटने जैसी घटनाएँ बढ़ रही हैं।”
क्यों हो रही है ये तब्दीली
वैज्ञानिकों के मुताबिक इसकी तीन बड़ी वजहें हैं:
1. समुद्रों का गर्म होना
अरब सागर और बंगाल की खाड़ी का तापमान बढ़ने से हवा में नमी ज़्यादा है। यही नमी बारिश की तीव्रता बढ़ा रही है।
2. वेस्टर्न डिस्टर्बेंसेज़ का शिफ्ट
जो पहले सर्दियों में सक्रिय रहते थे, अब गर्मियों में भी मॉनसून को उत्तर की ओर खींच रहे हैं।
3. मध्य-पूर्व की गर्म हवाएँ
वहाँ की गर्मी अब भारत तक असर डाल रही है, जिससे उत्तर-पश्चिम भारत में बिजली और तूफ़ान वाली तेज़ बारिश बढ़ी है।
हिमालय में बढ़ता ख़तरा
हिमालयी इलाकों में हालात और नाज़ुक हैं।
ग्लेशियर अब पहले से तेज़ी से पिघल रहे हैं। ग्लोबल एवरेज से तीन गुना तेज़। पिघलती झीलें और कमजोर होती ढलानें बाढ़ और लैंडस्लाइड की घटनाएँ बढ़ा रही हैं।
डॉ. अर्घ बनर्जी, IISER पुणे, कहते हैं, “जब तेज़ बारिश और ग्लेशियर मेल्ट एक साथ होती है, तो छोटी-छोटी धाराएँ भी खतरनाक फ्लैश फ्लड में बदल जाती हैं।”
डेटा क्या कहता है
IMD के लंबे समय के आंकड़े बताते हैं कि
1979 से 2022 के बीच उत्तर-पश्चिम भारत में
ग्रीष्मकालीन मॉनसून वर्षा 40% बढ़ चुकी है।
इसकी वजह है भारतीय महासागर और अरब सागर की बढ़ती गर्मी, जो ज़्यादा वाष्प और नमी पैदा करती है।
बारिश अब मौसम नहीं, संकेत है
इस साल का मॉनसून फिर साबित करता है कि अब बारिश सिर्फ़ पानी की नहीं, जलवायु की कहानी बन चुकी है।
कहीं खेतों में राहत, कहीं सड़कों पर तबाही — पर एक बात साफ़ है: ग्लोबल वार्मिंग अब भारत के मॉनसून में दिखने लगी है।