स्पेन के सेविला से निकली विकास की नई कहानी
कभी-कभी हलचल वहीं से शुरू होती है जहाँ सदी पुरानी व्यवस्थाएँ थकी हुई लगने लगती हैं। स्पेन के सेविला शहर में बीते सोमवार को कुछ वैसा ही हुआ। दुनिया भर के नेता, नीति निर्माता, बैंकर्स और सिविल सोसायटी के लोग एकजुट हुए—न किसी पार्टी के लिए, न किसी प्रचार के लिए, बल्कि इस सवाल पर विचार करने कि आख़िर विकास का पैसा आएगा कहाँ से?
फ़ाइनेंसिंग फॉर डिवेलपमेंट कॉन्फ़्रेंस (FFD4) में दुनिया के 190 से ज़्यादा देशों ने “Compromiso de Sevilla” यानी सेविला प्रतिज्ञा को अपनाया। एक वादा—जिसमें ना केवल Sustainable Development Goals (SDGs) के लिए ज़रूरी 4 ट्रिलियन डॉलर की फंडिंग का जिक्र था, बल्कि यह भी कि अब वैश्विक वित्तीय व्यवस्था को ज़िम्मेदार, पारदर्शी और न्यायपूर्ण बनाया जाएगा।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा—”हम यहाँ सेविला में एक नया रास्ता चुनने आए हैं।” एक ऐसा रास्ता जो विकास के इंजन की मरम्मत भी करता है और उसमें नई रफ्तार भी भरता है। स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज़ ने साफ़ कहा—”अब वादा दोहराने का नहीं, निभाने का वक़्त है।”
लेकिन ये कहानी महज़ बड़े मंचों की नहीं…
यह कहानी उन छोटे देशों की भी है जो कर्ज़ में डूबे हैं, उन शहरों की जो जलवायु आपदाओं से बेहाल हैं, और उन लोगों की जिनके लिए ‘विकास’ अब तक एक दूर का सपना रहा है।
सेविला प्रतिज्ञा सिर्फ़ एक घोषणापत्र नहीं है। यह एक प्लेटफ़ॉर्म ऑफ़ एक्शन भी है, जिसमें पहले ही दिन से 130 से ज़्यादा देशों और संस्थाओं ने मिलकर कर्ज़ सुधार, निवेश बढ़ाने, और निजी पूँजी को जिम्मेदार ढंग से उपयोग में लाने के लिए कदम उठाए हैं।
इन्हीं कोशिशों के बीच एक और दिलचस्प पहल देखने को मिली—International Business Forum. जहाँ CEOs और सरकारें साथ बैठीं, सिर्फ़ मुनाफ़े के लिए नहीं, बल्कि इस बात पर चर्चा करने कि कैसे व्यापार भी टिकाऊ विकास का भागीदार बन सकता है।
जलवायु संकट के दौर में पैसा ही परिवर्तन की चाभी है
आज जब हम जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहे हैं—कभी बाढ़, कभी सूखा, तो कभी ताप लहरें—ऐसे में सिर्फ़ नीतियाँ नहीं, पैसे का बहाव भी दिशा बदलना चाहिए। विकास तभी टिकाऊ होगा जब फाइनेंस क्लाइमेट के हिसाब से चलेगा। और यही तो सेविला ने दिखाया—पैसा भी इंसानियत के साथ खड़ा हो सकता है, बशर्ते इरादा साफ़ हो।
सेविला: एक शुरुआत, एक उम्मीद
सेविला कोई अंत नहीं है। यह एक लॉन्चपैड है—जहाँ से दुनिया ने यह मान लिया है कि विकास सिर्फ़ टॉप-डाउन घोषणाओं से नहीं, बल्कि बॉटम-अप डिलीवरी से आएगा। कि हर डॉलर को अब केवल ग्रोथ नहीं, गौरव और गरिमा से भी जोड़ना होगा।
आने वाले दिनों में देखना होगा कि यह Compromiso सिर्फ़ शब्दों तक सीमित रहता है या वाक़ई वित्तीय न्याय की नींव रखता है। पर एक बात तय है—सेविला ने वह चिंगारी पैदा कर दी है, जिसकी दुनिया को बहुत ज़रूरत थी।
चलते चलते एक सवाल
क्या भारत को भी अब ऐसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ज़्यादा सक्रिय भूमिका नहीं निभानी चाहिए? क्या हम अपने विकास और जलवायु लक्ष्यों को जोड़कर वैश्विक पूँजी को आकर्षित कर सकते हैं?