बेलेम की हवा में इस वक़्त सिर्फ़ उमस नहीं है, बेचैनी भी है.
COP30 के मंच पर जब दुनिया के नेता जलवायु के भविष्य की बातें कर रहे हैं, तब उसके पीछे की गलियों में एक और लड़ाई चल रही है, सच और झूठ की.
झूठ, जो सोशल मीडिया के ज़रिए धीरे-धीरे नरेटिव बनता गया.
झूठ, जिसने जलवायु बदलाव के खिलाफ़ सबसे बड़ी मुहिम को “षड्यंत्र” कह दिया.
और अब, उसी झूठ को चुनौती देने के लिए आवाज़ उठी है CAAD (Climate Action Against Disinformation) की तरफ़ से.
इस हफ़्ते जारी हुआ उनका ओपन लेटर किसी और प्रेस रिलीज़ की तरह नहीं है.
ये एक चेतावनी है. एक दस्तावेज़ जो याद दिलाता है कि क्लाइमेट की लड़ाई सिर्फ़ तापमान या उत्सर्जन की नहीं, बल्कि सत्य और भरोसे की भी है.
जब झूठ ने विज्ञान को हराने की कोशिश की
पिछले कुछ सालों में “क्लाइमेट डिनायल” का चेहरा बदल गया है.
अब कोई यह नहीं कहता कि जलवायु परिवर्तन हो ही नहीं रहा, बल्कि कहा जाता है कि “इतना भी गंभीर नहीं है.”
कुछ कहते हैं, “हर देश को अपना समय लेना चाहिए.”
कुछ और चालाक आवाज़ें इसे “हरित उपनिवेशवाद” कहकर असली सवालों से ध्यान भटका देती हैं.
CAAD के इस पत्र में साफ़ लिखा है, “डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स पर जलवायु विज्ञान और नीति के ख़िलाफ़ सुनियोजित भ्रामक अभियानों ने विश्वभर में नीतिगत निर्णयों को प्रभावित किया है. ये न सिर्फ़ गलत जानकारी फैलाते हैं, बल्कि लोगों के भरोसे को भी कमज़ोर करते हैं.”
सवाल उठता है, जब जनता को गुमराह किया जाता है, तो लोकतंत्र कैसे तय करेगा कि भविष्य किस दिशा में जाए?
सच का सहारा बनता समुदाय
इस पत्र पर 350 से ज़्यादा संगठनों और सैकड़ों वैज्ञानिकों, पत्रकारों और नीति-निर्माताओं ने हस्ताक्षर किए हैं.
इनमें से कई वो लोग हैं जो रोज़ झूठ का मुकाबला साक्ष्यों से करते हैं, सोशल मीडिया पोस्ट्स, रिपोर्ट्स, पॉडकास्ट्स और लोकल कहानियों के ज़रिए.
CAAD का यह कहना है कि अब वक्त आ गया है जब डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स को भी जवाबदेह ठहराया जाए.
“सिर्फ़ फेक न्यूज़ को हटाना काफी नहीं, हमें उस सिस्टम को बदलना होगा जो इन झूठों को पनपने देता है.”
पत्र में यह भी प्रस्ताव है कि COP30 जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर डिजिटल दायित्व (Digital Accountability) को एक औपचारिक एजेंडा बनाया जाए, ताकि झूठ के व्यापार को रोका जा सके.
बेलेम में उम्मीद की गूंज
COP30 के गलियारों में जब नेता “फाइनेंस” और “फॉसिल फ्यूल फेज़आउट” की बातें कर रहे हैं, तो इस पत्र ने एक अलग बहस छेड़ दी है.
क्या जलवायु एक्शन को मजबूत करने के लिए पहले हमें सूचना को शुद्ध नहीं करना चाहिए?
ब्राज़ील की पत्रकार एलिसा कार्वाल्हो कहती हैं,
“जब कोई झूठ बोलता है, तो वो सिर्फ़ एक तथ्य को नहीं बिगाड़ता, वो पूरी दिशा बदल देता है. झूठ से नीतियां धीमी पड़ती हैं, और धीमी नीतियां जानें लेती हैं.”
भारत से भी उठी आवाज़
भारतीय मीडिया और सिविल सोसाइटी के कई प्रतिनिधियों ने भी इस ओपन लेटर का समर्थन किया है.
क्योंकि भारत जैसे देशों में जलवायु बदलाव का असर सिर्फ़ तापमान पर नहीं, बल्कि आजीविका, कृषि, स्वास्थ्य और भविष्य की स्थिरता पर पड़ता है.
CAAD की भारत-स्थित साझेदार संस्था ने कहा, “हमारे लिए क्लाइमेट मिसइन्फॉर्मेशन सिर्फ़ डेटा का नहीं, जीवन का मुद्दा है.”
सवाल जो COP30 को सुनना होगा
इस ओपन लेटर की आवाज़ COP30 के मुख्य सत्रों तक पहुंच चुकी है.
कई डेलिगेट्स मांग कर रहे हैं कि जलवायु वार्ताओं में “डिजिटल इकोसिस्टम की भूमिका” पर औपचारिक चर्चा हो.
आख़िरकार, अगर क्लाइमेट एक्शन की कहानी झूठ पर टिकेगी, तो दुनिया असली समाधान से और दूर जाती जाएगी.
अंत में
बेलेम की रातें उमस भरी हैं, पर उम्मीद अब भी हवा में है.
क्योंकि जब भी झूठ की भीड़ बढ़ती है, कुछ लोग ऐसे होते हैं जो सच का दिया जलाए रखते हैं. CAAD का यह पत्र उसी दीये की लौ है, छोटी सही, पर ज़रूरी.
क्या आप भी सोचते हैं कि क्लाइमेट एक्शन सिर्फ़ सरकारों का काम है? शायद नहीं.
क्योंकि आज की सबसे बड़ी लड़ाई तथ्यों की रक्षा की है. और इस बार, ये लड़ाई कीबोर्ड से भी लड़ी जा रही है.