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पेरिस समझौते से और दूर ले जा रही है दुनिया की फॉसिल फ्यूल योजनाएँ: नया रिपोर्ट

Posted on September 22, 2025

स्टॉकहोम से जारी हुई एक बड़ी रिपोर्ट ने साफ कहा है कि पेरिस समझौते के 10 साल बाद भी सरकारें अब भी पुराने रास्ते पर चल रही हैं। 2025 का प्रोडक्शन गैप रिपोर्ट बताता है कि 2030 तक दुनिया भर की सरकारें जितना कोयला, तेल और गैस निकालने की योजना बना रही हैं, वो 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोक लगाने के लिए जरूरी स्तर से लगभग 120% ज्यादा है। यहां तक कि 2 डिग्री सेल्सियस के हिसाब से भी ये उत्पादन 77% ज्यादा बैठेगा।

2023 में यही आंकड़ा 110% और 69% था, यानी अब हालात और बिगड़े हैं। रिपोर्ट कहती है कि अगर यही सिलसिला चलता रहा तो पेरिस समझौते के लक्ष्य सिर्फ कागजों में ही रह जाएंगे।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष बताते हैं कि:

  • सरकारें अब 2035 तक कोयले और 2050 तक गैस उत्पादन और भी बढ़ाने की तैयारी में हैं।
  • तेल उत्पादन की योजनाएँ भी लगातार बढ़ रही हैं।
  • अगर पेरिस समझौते का लक्ष्य पाना है तो अब बहुत तेज़ी से और बड़े पैमाने पर फॉसिल फ्यूल उत्पादन घटाना होगा। वरना अरबों डॉलर की पब्लिक फंडिंग ऐसे प्रोजेक्ट्स पर बर्बाद होगी जो आगे चलकर बेकार (stranded assets) साबित होंगे।

रिपोर्ट में 20 बड़े फॉसिल फ्यूल उत्पादक देशों का भी आकलन किया गया है, जिनमें भारत, अमेरिका, चीन, सऊदी अरब, ऑस्ट्रेलिया और ब्राज़ील शामिल हैं। इनमें से 17 देश 2030 तक कम-से-कम एक फॉसिल फ्यूल का उत्पादन और बढ़ाने की योजना बना रहे हैं। अच्छी बात ये है कि 6 देशों ने अब ऐसी नीतियाँ बनानी शुरू कर दी हैं जो उनके राष्ट्रीय और वैश्विक नेट-जीरो लक्ष्यों से मेल खाती हैं।

रिपोर्ट की सह-लेखिका एमिली घोष कहती हैं, “1.5 डिग्री लक्ष्य बचाने के लिए सरकारों को तुरंत कदम उठाने होंगे—कोयला, तेल और गैस में निवेश घटाकर नवीकरणीय ऊर्जा, डिमांड मैनेजमेंट और न्यायपूर्ण ट्रांज़िशन की ओर पैसा लगाना होगा। वरना हालात और खराब होंगे, और सबसे ज़्यादा असर गरीब और कमजोर आबादी पर पड़ेगा।”

पूर्व UNFCCC प्रमुख क्रिस्टियाना फिगेरेस ने भी चेतावनी दी है कि ये रिपोर्ट एक अलार्म बेल है। उन्होंने कहा, “रिन्यूएबल्स का दौर तय है, लेकिन हमें तुरंत हिम्मत और एकजुटता दिखाकर ट्रांज़िशन को तेज़ करना होगा।”

साफ है, दुनिया को अब आधे-अधूरे वादों से आगे बढ़कर हकीकत में फॉसिल फ्यूल से बाहर निकलने की प्लानिंग करनी होगी। वरना पेरिस समझौते की 1.5 डिग्री की सीमा सिर्फ इतिहास की किताबों में रह जाएगी।

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