जब आप और हम पठान फिल्म के बॉयकॉट का समर्थन या विरोध कर रहे हैं, बीबीसी की किसी डॉक्युमेंट्री की राजनीति समझ रहे हैं, या फिर रज़ाई लपेट कर बढ़ती सर्दी का रोना रो रहे हैं, ठीक तब, लद्दाख में एक शख़्स पिघलते ग्लेशियरों की तरफ हम सबका ध्यान खींचने के लिए खुले आसमान के नीचे अनशन कर रहा…