भारत का प्रवेश द्वार कहा जाने वाला राज्य महाराष्ट्र भारत के सबसे बड़े वाणिज्यिक और औद्योगिक केंद्रों में से एक है। इस राज्य ने देश के सामाजिक और राजनीतिक विकास और बदलाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।फ़िलहाल ये राज्य कोविड से जूझता नज़र आ रहा है लेकिन इस बीच यहाँ से जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ लड़ाई के सन्दर्भ…
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कोयला खादानों का मीथेन एमिशन जलवायु के लिए बड़ा ख़तरा
क्या आपको पता है दुनिया भर में प्रस्तावित कोयले की खादानों से होने वाला मीथेन एमिशन अमेरिका के सभी कोयला बिजली घरों से होने वाले कार्बन डाईऑक्साइड एमिशन की बराबरी कर सकता है? स्थिति की गंभीरता इसी से लगाइए कि CO2 के बाद ग्लोबल वार्मिंग में मीथेन का ही सबसे बड़ा योगदान रहा है। मीथेन…
पर्यावरण की बेहतरी के नाम पर कहीं कार्बन न्यूट्रल एलएनजी छलावा तो नहीं?
आजकल आयल और गैस के क्षेत्र में एक नया ट्रेंड जोर पकड़ रहा है। और ये है कार्बन न्यूट्रल एलएनजी का। शेल और गैज़प्रोम जैसी कम्पनियों ने यूरोप में पहला कार्बन न्यूट्रल एलएनजी कार्गो बेचने का दावा भी किया है। उधर जापान में 15 गैस खरीदारों ने इस ईंधन की खरीद को बढ़ावा देने के…
रिन्युब्ल एनेर्जी के बैटरी स्टोरेज को व्यावहारिक बनाने की स्पष्ट नीति जरूरी
परम्परागत कोयला बिजलीघरों के कारण बढ़ते प्रदूषण से उत्पन्न चिंताओं के बीच वैश्विक स्तर पर आशा की किरण के रूप में उभरी सौर और वायु ऊर्जा अपने साथ कुछ चुनौतियां भी लेकर आयी है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रकार की अक्षय ऊर्जा के स्टोरेज और उसके समझदारी से इस्तेमाल की स्पष्ट नीति नहीं…
सिर्फ़ नेट ज़ीरो होने की घोषणा काफ़ी नहीं, पारदर्शिता भी ज़रूरी: नेचर
तमाम देशों में आजकल होड़ है कि और कुछ न सही तो कम से कम जलवायु के लिए अपनी संवेदनशीलता तो जग ज़ाहिर कर दें। इस क्रम में नेट ज़ीरो होने की घोषणा आम हो रही है। लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि सिर्फ़ ये कह देना कि हम नेट ज़ीरो होने जा रहे हैं, काफ़ी…
चीन की ताज़ा पंचवर्षीय योजना में जलवायु के लिए अनिश्चिता के संकेत
इस साल, चीन में 14-वीं पंचवर्षीय योजना की शुरुआत होगी। लेकिन जलवायु परिवर्तन की चुनौती से लड़ने की नज़र से अगर इस योजना के बारे में मिल रही जानकारी को देखा जाए तो कहना गलत नहीं होगा कि ख़ास उम्मीद नहीं लगायी जा सकती इस योजना से। साल 1953 से, चीन सरकार अपने देश में…
जलवायु आपातकाल रोकने के लिए CO2 उत्सर्जन कटौती दर में दस गुना वृद्धि ज़रूरी
भले ही तमाम देश कार्बन उत्सर्जन में कटौती का दम भर रहे हैं , लेकिन असलियत ये है कि उनकी इस कटौती की दर में दस गुना बढौतरी की ज़रूरत है। दरअसल एक नए शोध से पता चलता है कि भले ही 2016-2019 के दौरान 64 देशों ने अपने CO2 उत्सर्जन में ख़ासी कटौती की, लेकिन जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पेरिस समझौते…