निशान्त
दुनिया के जिस सबसे तेज़ जानवर को साल 1952 में भारत में विलुप्त घोषित किया गया, उसी जानवर का सत्तर साल बाद मध्य प्रदेश के श्योपुर ज़िले में कुनो-पालपुर नेशनल पार्क (केएनपी) में एक नया घर मिलेगा। और इसी के साथ देश कि पारिस्थितिकी के शुरू होंगे अच्छे दिन।
यहाँ जिस जानवर की बात हो रही है, वो है चीता। और इस महीने, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने 72वें जन्मदिन, 17 सितम्बर, पर लगभग आधा दर्जन अफ्रीकी चीतों का भारत में स्वागत करेंगे। यह चीते नामीबिया से एक अपनी तरह की पहली ग्लोबल इंटरकांटिनेंटल कार्निवोर ट्रांसलोकेशन परियोजना के तहत कुनो-पालपुर नेशनल पार्क आ रहे हैं। इनके आने के बाद कुनो-पालपुर नेशनल पार्क भारत का पहला चीता अभयारण्य बनेगा।
इतिहास
वैसे तो चीता को भारत लाने की योजना एक दशक से अधिक समय से चल रही है, लेकिन इसने गति पकड़ी जनवरी 2020 में जब सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा कुछ करने की अनुमति दे दी। दरअसल मामला 2010 का है जब नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) ने नामीबिया से अफ्रीकी चीता को भारत लाने की अनुमति मांगी। मगर भारत की शीर्ष अदालत ने साल 2013 में जानवर को “विदेशी प्रजाति” कह कर अनुमति देने से माना कर दिया।
22 फरवरी 2019 को, एनटीसीए ने शीर्ष अदालत को बताया था कि नामीबिया से भारत लाये जाने वाले अफ्रीकी चीता को मध्य प्रदेश के नौरदेई वन्यजीव अभयारण्य में रखा जाएगा। इस प्राधिकरण ने यह भी बताया कि इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN), जो जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन और सतत विकास पर सरकारों और संस्थानों को दिशा निर्देश प्रदान करता है, ने न सिर्फ चीता के इस स्थानांतरण के लिए अनापत्ति दे दी है, बल्कि जानवरों को भारत लाने में मदद की भी बात की है। अंततः साल 2020 में अनुमति मिल गयी।
आगे की गतिविधि
इन जानवरों को पर्यावरण और वन मंत्रालय और जलवायु परिवर्तन, द्वारा वित्त पोषित परियोजना के अंतर्गत भारत लाया जा रहा है। ऐसा बताया जा रहा है कि इन जानवरों को 3-4 जगहों में बाँट कर बाड़ों में रखा जाएगा जिससे यह स्थानीय पर्यावरण के आदि हो सकें। इस परियोजना के तहत कुनो-पालपुर को 6-8 चीता मिलेंगे। नर चीतों को पहले छोड़ा जाएगा और मादा को बाद में। जब नर चीते जंगल में बस जाएंगे तब मादा चीता छोड़ी जाएंगी। ऐसा करने के लिए 1 वर्ग किमी क्षेत्र में और 2.5 मीटर की ऊंचाई वाले सॉफ्ट रिलीज एनक्लोजर को भी तैयार किया गया है।
परियोजना का महत्व
वो जानवर जिसे 70 साल फले विलुप्त घोषित किया गया उसे वापस लाने की यह परियोजना निश्चित रूप से रोमांचक और महत्वपूर्ण है। साल 2009 में, केंद्र सरकार ने भारत में मूल रूप से पाये जाने वाले एशियाई चीता को ईरान से खरीदने की कोशिश की। मगर जब योजना सफल नहीं हुई तो सरकार ने नामीबिया की ओर रुख किया। साल 2010 में, भारत के वन्यजीव संस्थान, देहरादुन और वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया, नोएडा के शोधकर्ताओं ने इस योजना की व्यवहार्यता का आकलन किया, वापस ला कर रखने के संभावित स्थलों की पहचान की, और उस सबका आंकलन किया। इस रिपोर्ट के अनुसार चीता को लाना एक तरह से हमारी ‘खोई हुई प्राकृतिक विरासत’ को वापस लाने जैसा होगा और इस प्रक्रिया में, पारिस्थितिकी तंत्र में एक बेहतर समंजस्य बनाने का काम करेगा। रिपोर्ट में यह भी कहा गया ऐसा करना भारत में घास के मैदानों के प्रबंधन को बढ़ावा दे सकता है और स्थानीय लोगों को अपने पशुधन पालने में मदद कर सकता है। इस रिपोर्ट का मसौदा तैयार करते समय, एक प्रारंभिक अध्ययन में यह भी कहा गया था कि कुनो-पालपुर वन्यजीव अभयारण्य, जो तब केवल 750 वर्ग किमी आकार में था, के पास पारिस्थितिकी तंत्र में इस नए शिकारी के लिए शिकार के रूप में उचित संख्या में मृग उपलब्ध हैं। इसके चलते चीता अपनी संख्या आराम से बढ़ा सकते हैं। चीतों का यहाँ आना पार्क के आसपास रहने वाले स्थानीय समुदायों के लिए पर्यटन और राजस्व के लिए भारी संभावनाएं भी बनाता है।
पारिस्थितिकी तंत्र में भूमिका
चीता पारिस्थितिकी तंत्र में एक विशेष भूमिका निभाते है और इन्हें सबसे बड़ा शिकारी कहाँ जाता है। इसका अर्थ है कि वे खाद्य श्रृंखला में सबसे ऊपर हैं। यदि हम एक पारिस्थितिकी तंत्र से चीता को हटाते हैं तो हम देखते हैं कि “ट्रॉफिक कैस्केड” होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो इसका मतलब हुआ कि जब एक जानवर का हटना खाद्य शृंखला में अन्य जानवरों को प्रभावित करता है। भारत में चीता का न होना ऐसी ही स्थिति बनाता है और यह एक खराब स्थिति है। खराब इसलिए क्योंकि ऐसा होने से जानवरों की आबादी का नियंत्रण नहीं हो पाता और जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
चीता कमजोर और बूढ़े जानवरों को मारकर प्रजातियों को स्वस्थ रखते हैं। वे जानवरों की जनसंख्या वृद्धि पर भी लगाम बनाए रखते हैं। साथ ही, ऐसा करने से वे ओवरग्रेजिंग या घास के मैदानों को जानवरों द्वारा चर कर सूखा कर देने की संभावना को भी रोकते हैं। चीता जैसे शिकारियों की मदद से घास के मैदान रेगिस्तान बनने से बचेंगे क्योंकि वे घास चरने वाले जानवरों को खा कर उनकी संख्या पर नियंत्रण रखेंगे।
ध्यान देने वाली बात है कि प्रजातियां और पारिस्थितिकी तंत्र जुड़े हुए हैं। इसका मतलब है कि एक प्रजाति के साथ जो होता है, वह जानवरों, पौधों और लोगों सहित एक पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर सकता है। इसलिए चीता का भारत में वापस आना पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बेहद सकारात्मक परिणाम ला सकता है। ये कहा जाए कि पारिस्थितिकी तंत्र के अच्छे दिन लाएगा चीता, तो शायद गलत न होगा।