जब सूरज ढल जाए, BESS साथ निभाए
कुछ इंकलाब नारे लेकर आते हैं। और कुछ सिर झुकाए, काम में लगे रहते हैं—बिना तमगे की चाहत के, बस अपना फ़र्ज़ निभाते हुए। Battery Energy Storage Systems, यानी BESS, ऐसी ही एक चुपचाप चलने वाली ताक़त है। ना चर्चा, ना तमाशा, पर जिसकी गैरमौजूदगी में पूरी रिन्यूएबल क्रांति अधूरी रह जाएगी।
भारत का 2030 तक 500 गीगावॉट नॉन-फॉसिल पावर का सपना, सिर्फ़ सूरज और हवा के भरोसे पूरा नहीं हो सकता। क्योंकि इनका मिज़ाज मौसम के साथ बदलता है। जब ज़रूरत हो, तब नहीं मिलते। जब ज़्यादा बनता है, तब ज़रूरत नहीं होती। इस टूटे तालमेल को BESS जोड़ता है।
डॉ. राजीव के मिश्रा, जो PTC India के पूर्व अध्यक्ष और MDI गुरुग्राम के प्रोफेसर हैं, साफ़ कहते हैं, “जैसे-जैसे सोलर और विंड की हिस्सेदारी बढ़ रही है, ग्रिड की स्थिरता और ऊर्जा की विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे हैं। बैटरी स्टोरेज सिस्टम इन समस्याओं को सुलझा रहा है। ये रिन्यूएबल को ज़्यादा उपयोगी बना रहा है और थर्मल प्लांट्स को ज़्यादा लचीला।”
ये बस ऊर्जा का स्टोरेज नहीं है—ये उस ऊर्जा को वक्त पर लोगों तक पहुंचाने की कला है। और इसी वजह से देश की ऊर्जा व्यवस्था अब वैसी नहीं रह सकती जैसी पहले थी। हमें एक ऐसा ग्रिड चाहिए जो बदलती परिस्थितियों के साथ खुद को ढाल सके।
Semco Group के नीरज कुमार सिंगल मानते हैं कि हम एक नई ऊर्जा व्यवस्था की शुरुआत देख रहे हैं। वो कहते हैं, “BESS भारत की पावर डिस्ट्रीब्यूशन को री-इमैजिन कर रहा है। दिल्ली के किलोकरी सबस्टेशन जैसे प्रोजेक्ट ये दिखा रहे हैं कि अब स्टोरेज सिर्फ़ बैकअप नहीं, बल्कि एक सर्विस प्रोवाइडर बन चुका है—जो 24×7 ग्रिड को भरोसेमंद बना रहा है।”
टाटा पावर मुम्बई में इसका शानदार उदाहरण पेश कर रहा है—100 मेगावॉट के BESS को 10 अलग-अलग जगहों पर लगाकर, वो सोलर एनर्जी को उस समय इस्तेमाल कर रहे हैं जब उसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है—यानी शाम के पीक घंटे। मतलब ये कि न सिर्फ़ ब्लैकआउट कम होंगे, बल्कि पावर टैरिफ और कोयले पर निर्भरता भी घटेगी।
लंबे समय तक बैटरी स्टोरेज को महंगा माना गया था। लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। GoodEnough Energy के अदित अग्रवाल बताते हैं, “हम सबसे सस्ते बनने नहीं आए। हमारा मकसद है ऐसा प्रोडक्ट देना जो 25 साल तक टिके और इन्वेस्टमेंट को वाजिब रिटर्न दे। लिथियम की कीमतें गिरी हैं और सरकारी सपोर्ट से हम अब क़ीमत की लड़ाई नहीं लड़ रहे—हम वैल्यू की बात कर रहे हैं।”
और सच ये भी है कि नीति के स्तर पर भारत ने बड़ी चाल चली है—5400 करोड़ की VGF स्कीम, ट्रांसमिशन छूट और घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए इंसेंटिव। अब SECI जैसी एजेंसियों के टेंडर में BESS की कीमत ₹13,000 प्रति kWh तक आ चुकी है, और आगे और गिरने की उम्मीद है।
NeoGreen Energy के डायरेक्टर कृष्णा कुलकर्णी का कहना है कि “जैसे सोलर एनर्जी अब कंपनियों की लॉन्ग टर्म स्ट्रैटजी का हिस्सा बन चुकी है, वैसे ही बैटरी स्टोरेज भी आने वाले 3-5 सालों में कॉर्पोरेट रणनीति में स्थायी रूप से शामिल होगा।” वो आगे जोड़ते हैं, “बैटरी स्टोरेज अब सोलर पावर को वक्त के हिसाब से शिफ्ट करने में सक्षम है, जिससे इंडस्ट्रियल लोड को दिन-रात क्लीन एनर्जी मिल सके।”
यानी अब फैक्ट्रियों को सूरज के हिसाब से नहीं, अपने टाइमटेबल के मुताबिक़ क्लीन एनर्जी मिलेगी। पंजाब की एक टेक्सटाइल फैक्ट्री से लिए गए डेटा पर आधारित रिसर्च में, Future University की डॉ. मीरा शर्मा और उनकी टीम ने दिखाया कि कैसे इंडस्ट्रियल रूफटॉप सोलर में BESS जोड़ने से न सिर्फ़ एनर्जी क्वालिटी बेहतर होती है, बल्कि हार्मोनिक डिस्टॉर्शन भी घटता है। Fuzzy logic controllers जैसी तकनीकें BESS को इंडस्ट्री के लिए और भी स्मार्ट बनाती हैं।
लेकिन जहां मौके हैं, वहां जोखिम भी हैं। Eldred Sterling चेतावनी देते हैं—“बैटरी टेक्नोलॉजी बहुत तेज़ी से बदल रही है। आपको ऐसे पार्टनर के साथ जाना चाहिए जो फ्यूचरप्रूफ हों, जिनके पास सुरक्षा सर्टिफ़िकेट हों, और जो लॉन्ग टर्म सर्विस भी दे सकें। ये टेक्नोलॉजी का नहीं, भरोसे का मामला है।”
2032 तक भारत को 236 GWh की बैटरी स्टोरेज चाहिए होगी। अभी हम महज़ 219 MWh पर हैं। ज़रूरत के हिसाब से आने वाले कुछ सालों में ₹4.79 लाख करोड़ का निवेश होना है। लेकिन अगर सब सही चला, तो हम 2 अरब टन से ज़्यादा CO₂ बचा सकते हैं। और डिस्पैचेबल, भरोसेमंद क्लीन पावर की कीमत ₹4.5–6 प्रति यूनिट तक लाई जा सकती है—जो कोयले जैसी पारंपरिक बिजली के मुकाबले बहुत कुछ कहती है।
शायद BESS कभी किसी स्पॉटलाइट में ना हो। शायद इसके नाम पर कोई राष्ट्रीय योजना दिवस ना मनाया जाए। लेकिन जब कोई तूफ़ान ग्रिड उड़ा देता है और आपका घर फिर भी रोशन रहता है, जब कोई फैक्ट्री रात को भी सोलर एनर्जी से चलती है—तो जानिए, कहीं एक बैटरी है जो अपना वादा निभा रही है।
ये सिर्फ़ स्टोरेज नहीं, ये एक भरोसे की नींव है। ये उस वादे का इंतज़ाम है जो भारत ने किया है—कि वो क्लीन एनर्जी के रास्ते पर चलेगा, और हर अंधेरे के बाद भी रोशनी आएगी।
