भारत के बिजली क्षेत्र में एक बड़ा मोड़ आ गया है।
नई रिपोर्ट बताती है कि 2032 के बाद अगर देश ने और कोयला बिजलीघर जोड़े, तो वो “घाटे का सौदा” साबित होंगे। क्योंकि तब तक देश की ऊर्जा ज़रूरतें — अगर मौजूदा योजनाएँ पूरी हुईं, सौर, पवन और बैटरी स्टोरेज से ही पूरी की जा सकती हैं।
यह निष्कर्ष सामने आया है ऊर्जा थिंक-टैंक Ember की नई रिपोर्ट “Coal’s Diminishing Role in India’s Electricity Transition” में।
“अब कोयले की नहीं, समझदारी की ज़रूरत है”
रिपोर्ट के मुताबिक, अगर भारत अपने National Electricity Plan (NEP) 2032 के सौर, पवन और स्टोरेज के लक्ष्यों को पूरा कर लेता है, तो नई कोयला क्षमता जोड़ने की कोई ज़रूरत नहीं रहेगी, न भरोसेमंद बिजली के लिए, न पीक डिमांड के लिए।
Ember के सीनियर एनर्जी एनालिस्ट नेशविन रोड्रिग्स कहते हैं, “भारत का पावर सेक्टर अब ट्रांज़िशन के नए दौर में है। जैसे-जैसे सोलर और स्टोरेज सस्ते होते जा रहे हैं, कोयले की भूमिका घट रही है। मौजूदा योजना से ज़्यादा कोयला बनाना अब न ज़रूरी है, न आर्थिक।”
10% नई यूनिटें बंद पड़ी रहेंगी, 25% आधी क्षमता पर चलेंगी
रिपोर्ट में 2031-32 के वित्तीय वर्ष के लिए एक least-cost operations model के ज़रिए आकलन किया गया है।
अगर भारत ने अपने रिन्यूएबल और स्टोरेज लक्ष्यों को हासिल कर लिया, तो:
- 2024-25 में जो नई कोयला यूनिट्स बनेंगी, उनमें से 10% 2032 तक पूरी तरह बेकार (unutilised) हो जाएँगी,
- और करीब 25% यूनिट्स आधी क्षमता पर चलेंगी।
इसकी वजह है गिरती Plant Load Factor (PLF), जो 2024-25 में 69% से घटकर 2031-32 में 55% रह जाएगी।
कम उपयोग का मतलब है ज़्यादा लागत। रिपोर्ट के मुताबिक, 2032 तक कोयले से मिलने वाली बिजली 25% महँगी हो जाएगी क्योंकि फिक्स्ड कॉस्ट और अक्षम संचालन (inefficiency) दोनों बढ़ेंगे।
‘क्लीन’ बिजली अब भरोसेमंद और सस्ती दोनों
Ember की रिपोर्ट बताती है कि अब भारत में Firm and Dispatchable Renewable Energy (FDRE) —
यानि सौर या पवन के साथ बैटरी स्टोरेज, बिजली का सबसे भरोसेमंद और लचीला (flexible) विकल्प बन चुका है।
इन प्रोजेक्ट्स के टैरिफ अब ₹4.3 से ₹5.8 प्रति यूनिट के बीच हैं, और ये लगातार 24×7 उपलब्धता के मानकों को पूरा कर रहे हैं।
Ember के चीफ एनालिस्ट डेव जोन्स कहते हैं, “भारत की बैटरी तकनीक बहुत तेज़ी से आगे बढ़ रही है।
नई सोडियम-आयन बैटरियाँ अब बिना किसी क्रिटिकल मिनरल के बनती हैं, और इनकी उम्र कई दशकों तक चलती है।
जिस तरह भारत सोलर मैन्युफैक्चरिंग में आत्मनिर्भर बना, वैसा ही बैटरी मैन्युफैक्चरिंग में भी बन सकता है।”
उनका कहना है कि भारत अब solar + battery के संयोजन से “365 दिन बिजली” देने की दिशा में बढ़ रहा है।
महँगी पड़ रही है कोयले की बिजली
आज की तारीख़ में भी कोयला बिजली सस्ती नहीं है। रिपोर्ट बताती है कि हाल के टैरिफ
- बिहार में ₹6 प्रति यूनिट,
- और मध्य प्रदेश में ₹5.85 प्रति यूनिट तक पहुँच चुके हैं, वो भी ऐसे राज्यों में जो कोयला खदानों के करीब हैं।
इनमें से ₹4 प्रति यूनिट से ज़्यादा हिस्सा सिर्फ़ फिक्स्ड कॉस्ट का है, यानि प्लांट चाहे चले या न चले, यह रकम देनी ही पड़ती है।
अगर PLF 55% तक गिर गया, तो ₹6 यूनिट की कोयला बिजली की असल लागत ₹7.25 प्रति यूनिट तक पहुँच जाएगी।
इससे बिजली वितरण कंपनियों (DISCOMs) का बोझ बढ़ेगा, और कई कोयला प्लांट “stranded assets” बन जाएँगे, यानि जिन पर कर्ज़ चुकाना जारी है, लेकिन जिनसे बिजली नहीं खरीदी जाती।
पुरानी गलतियों से सबक लेने का समय
Ember के एशिया एनालिस्ट दत्तात्रेय दास ने कहा, “भारत पहले भी कोयले की ज़रूरत से ज़्यादा क्षमता बनाकर नुकसान उठा चुका है।
अब जब ऊर्जा प्रणाली बदल रही है, वही गलती दोहराना भारी पड़ेगा। रिन्यूएबल और स्टोरेज अब सबसे समझदार निवेश हैं।”
रिपोर्ट में तीन स्पष्ट सुझाव दिए गए हैं:
- बैटरी स्टोरेज प्रोजेक्ट्स को तेज़ी से लागू करना।
- पुराने थर्मल प्लांट्स को लचीला बनाने के लिए रेट्रोफिट करना।
- ग्रिड और रिज़र्व सिस्टम को मज़बूत करना, ताकि सौर और पवन को बेहतर तरीके से ग्रिड में जोड़ा जा सके।
कहानी का सार: कोयला नहीं, समझदारी चाहिए
भारत की ऊर्जा कहानी अब बदल रही है। पहले सवाल था — क्या रिन्यूएबल भरोसेमंद है?
अब सवाल है — जब रिन्यूएबल भरोसेमंद और सस्ता दोनों है, तो कोयले पर क्यों टिके रहें?
2032 तक भारत के पास इतनी क्लीन और किफायती बिजली क्षमता होगी कि कोयला सिर्फ़ एक “बैकअप” भूमिका में रह जाएगा।
लेकिन अगर आज भी नई कोयला परियोजनाएँ मंज़ूर की गईं, तो आने वाले दशक में वे घाटे और प्रदूषण दोनों का बोझ बनेंगी।