क्या हम पेड़ लगाकर और CO₂ को कैप्चर करके ग्लोबल वॉर्मिंग रोक सकते हैं? यह विचार जितना सीधा और आकर्षक लगता है, उतना ही जटिल भी है। हाल ही में पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च (PIK) द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन ने इस अवधारणा की सीमाओं को उजागर किया है। यह अध्ययन बताता है कि अगर Bioenergy with Carbon Capture and Storage (BECCS) तकनीक को कृषि क्षेत्र से बाहर लागू किया जाए, तो यह पृथ्वी के पारिस्थितिक संतुलन के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है।
लेकिन यह तकनीक आखिर है क्या? इसके फायदे और नुकसान क्या हैं? और सबसे अहम सवाल—क्या यह सच में जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में कोई ठोस समाधान दे सकती है?
BECCS तकनीक: आइडिया क्या है?
BECCS यानी Bioenergy with Carbon Capture and Storage—एक ऐसी प्रक्रिया जिसमें तेज़ी से बढ़ने वाले पेड़-पौधों (जैसे हाथी घास या Miscanthus) को उगाया जाता है, फिर उन्हें जलाकर ऊर्जा प्राप्त की जाती है, और उस दौरान निकलने वाले CO₂ को कैप्चर करके ज़मीन के नीचे सुरक्षित रूप से स्टोर कर दिया जाता है।
सिद्धांत यह है कि पेड़-पौधे वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) अवशोषित करते हैं, और जब इन्हें जलाया जाता है, तो निकलने वाले CO₂ को कैप्चर कर लिया जाए तो वातावरण में अतिरिक्त ग्रीनहाउस गैस नहीं जाएगी। इस तरह, यह तकनीक न केवल कार्बन न्यूट्रल होगी, बल्कि नकारात्मक उत्सर्जन (negative emissions) भी पैदा कर सकती है।
सुनने में यह विचार प्रभावी लगता है, लेकिन असलियत में क्या यह उतना कारगर है?
नई स्टडी के निष्कर्ष: BECCS की सीमाएँ
PIK की रिपोर्ट के मुताबिक, 2050 तक BECCS के ज़रिए केवल 200 मिलियन टन CO₂ ही हटाया जा सकता है, अगर इसे कृषि क्षेत्र के बाहर लागू किया जाए। यह आंकड़ा जलवायु नीति निर्माताओं की उम्मीदों से कहीं कम है।
इसके पीछे चार बड़े कारण हैं:
नाइट्रोजन प्रदूषण – अधिक मात्रा में जैव ऊर्जा (bioenergy) उगाने के लिए उर्वरकों की जरूरत होगी, जिससे नाइट्रोजन चक्र बिगड़ सकता है। रिपोर्ट के अनुसार, नाइट्रोजन सीमाओं को ध्यान में रखते हुए BECCS का कार्बन हटाने का क्षमता 21% तक कम हो सकती है।
ताज़े पानी की कमी – बड़ी मात्रा में पौधे उगाने के लिए पानी की ज़रूरत होगी, जिससे पानी की उपलब्धता पर भारी दबाव पड़ेगा। इससे BECCS की क्षमता 59% तक घट सकती है।
वनों की कटाई की सीमा – अगर इस तकनीक को व्यापक रूप से लागू किया गया, तो अधिक से अधिक जंगलों को काटकर नई फसलें उगाने की ज़रूरत होगी, जिससे कार्बन स्टोरेज की क्षमता 61% तक गिर सकती है।
जैव विविधता पर असर – प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को बदलकर औद्योगिक खेती शुरू करने से जैव विविधता पर बुरा असर पड़ेगा। इससे BECCS की क्षमता 93% तक गिर सकती है।
स्टडी के मुताबिक, अगर इन चारों सीमाओं का पालन किया जाए, तो BECCS 2050 तक 7.5 बिलियन टन CO₂ हटाने के जलवायु मॉडल अनुमानों के आस-पास भी नहीं पहुंच पाएगा।
क्या BECCS जलवायु समाधान के लिए पर्याप्त है?
BECCS का उपयोग तभी सफल हो सकता है जब इसके लिए ज़रूरी भूमि उपलब्ध हो। लेकिन यह तभी संभव है जब कृषि भूमि के उपयोग को बदला जाए, कम पशुपालन हो, और शाकाहारी आहार को बढ़ावा दिया जाए।
यानी, अगर दुनिया मांसाहार कम करे और ज़मीन का उपयोग अधिक प्रभावी ढंग से करे, तो ही BECCS का कार्बन हटाने की क्षमता बढ़ सकती है।
लेकिन क्या हम पूरी खाद्य प्रणाली को इतना जल्दी बदल सकते हैं? यह सवाल नीति निर्माताओं और समाज के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।
तो फिर जलवायु संकट से निपटने का सबसे अच्छा तरीका क्या है?
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें कार्बन उत्सर्जन को जल्द से जल्द कम करना होगा, न कि सिर्फ उसे कैप्चर करने पर निर्भर रहना चाहिए।
BECCS जैसी तकनीकों को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता, लेकिन इन्हें जलवायु संकट के “मुख्य समाधान” के रूप में देखना गलत होगा।
हमें अन्य टिकाऊ समाधानों पर ध्यान देना होगा, जैसे:
- Direct Air Capture (DAC) – वातावरण से सीधे CO₂ हटाने की तकनीक।
- Mineral Weathering – प्राकृतिक चट्टानों की मदद से CO₂ सोखने की प्रक्रिया।
- वन संरक्षण और पुनर्वनीकरण – नए जंगल लगाना और पुराने जंगलों को बचाना।
यह स्टडी अभी क्यों अहम है?
2025 तक, हम पहले ही 1.5°C ग्लोबल वार्मिंग सीमा पार कर चुके हैं।
जलवायु नीति निर्माता अभी भी BECCS जैसी तकनीकों पर भरोसा कर रहे हैं, जबकि उनकी सीमाएँ स्पष्ट हैं।
अगर गलत नीतियों पर ध्यान दिया गया, तो जलवायु संकट से निपटने का मौका हाथ से निकल सकता है।
चलते चलते: असली समाधान उत्सर्जन में कटौती है, BECCS नहीं!
इस अध्ययन का सबसे महत्वपूर्ण संदेश यह है कि जलवायु संकट से निपटने का सबसे प्रभावी तरीका कार्बन उत्सर्जन को कम करना है, न कि सिर्फ उसे हटाने की नई तकनीकों पर निर्भर रहना।
अगर BECCS को अपनाना भी है, तो इसे व्यापक नीति सुधारों और ज़मीन के सतत उपयोग के साथ संतुलित करना होगा।
हमें फोकस इस पर करना होगा कि हम कम कार्बन उत्सर्जित करें, न कि यह सोचें कि बाद में इसे कैसे हटाएँ।
तो अगली बार जब कोई कहे कि “पेड़ लगाकर ग्लोबल वॉर्मिंग रोकी जा सकती है,” तो याद रखें—यह अकेला हल नहीं है!