चीन की साझा मेज़बानी वाली “मिनिस्ट्रियल ऑन क्लाइमेट एक्शन” (MoCA) में मंगलवार को हुई बहुपक्षीय वार्ता से उम्मीद है उसके आधार पर दुनिया के दो सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जकों, चीन और अमेरिका, के बीच अधिक विस्तृत कार्यवाही के लिए न सिर्फ एक अच्छी शुरुआत होगी, बल्कि पारस्परिक विश्वास के पुनर्निर्माण और मतभेदों के प्रबंधन के लिए बेहतर…
Category: जलवायु परिवर्तन

कारोबार पर जलवायु परिवर्तन का असर साफ़ ज़ाहिर, डीकार्बोनाइज़ेशन के लिए समय मुफ़ीद
भारत का प्रवेश द्वार कहा जाने वाला राज्य महाराष्ट्र भारत के सबसे बड़े वाणिज्यिक और औद्योगिक केंद्रों में से एक है। इस राज्य ने देश के सामाजिक और राजनीतिक विकास और बदलाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।फ़िलहाल ये राज्य कोविड से जूझता नज़र आ रहा है लेकिन इस बीच यहाँ से जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ लड़ाई के सन्दर्भ…

कोयला खादानों का मीथेन एमिशन जलवायु के लिए बड़ा ख़तरा
क्या आपको पता है दुनिया भर में प्रस्तावित कोयले की खादानों से होने वाला मीथेन एमिशन अमेरिका के सभी कोयला बिजली घरों से होने वाले कार्बन डाईऑक्साइड एमिशन की बराबरी कर सकता है? स्थिति की गंभीरता इसी से लगाइए कि CO2 के बाद ग्लोबल वार्मिंग में मीथेन का ही सबसे बड़ा योगदान रहा है। मीथेन…

जीवाश्म ईंधन पर प्रतिबन्ध लगाने वाले शहरों की संख्या में हुआ पांच गुना इज़ाफ़ा
दुनिया की आधी से ज़्यादा आबादी ऐसे शहरों में रहती है जहाँ दुनिया की तीन चौथाई बिजली की खपत होती है। इसी वजह से, लगातार दूसरे साल, REN21 ने अपने ताज़ा प्रयास में विश्लेषण किया है कि वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए उत्सर्जन के ख़िलाफ़ जंग में दुनिया भर के शहर रिन्यूएबल ऊर्जा का उपयोग…

रिन्युब्ल एनेर्जी के बैटरी स्टोरेज को व्यावहारिक बनाने की स्पष्ट नीति जरूरी
परम्परागत कोयला बिजलीघरों के कारण बढ़ते प्रदूषण से उत्पन्न चिंताओं के बीच वैश्विक स्तर पर आशा की किरण के रूप में उभरी सौर और वायु ऊर्जा अपने साथ कुछ चुनौतियां भी लेकर आयी है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रकार की अक्षय ऊर्जा के स्टोरेज और उसके समझदारी से इस्तेमाल की स्पष्ट नीति नहीं…

सिर्फ़ नेट ज़ीरो होने की घोषणा काफ़ी नहीं, पारदर्शिता भी ज़रूरी: नेचर
तमाम देशों में आजकल होड़ है कि और कुछ न सही तो कम से कम जलवायु के लिए अपनी संवेदनशीलता तो जग ज़ाहिर कर दें। इस क्रम में नेट ज़ीरो होने की घोषणा आम हो रही है। लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि सिर्फ़ ये कह देना कि हम नेट ज़ीरो होने जा रहे हैं, काफ़ी…

यही हाल रहा तो छह महीने रहेंगी गर्मियां!
निशान्त इसमें तो कतई कोई दो राय नहीं कि जलवायु परिवर्तन के असर अब दुनिया के हर कोने में साफ़ दिखाई देने लगे हैं। फिर चाहें वो ध्रुवों पर पिघलते ग्लेशियर हों, या अमेज़न के जंगलों में लगने वाली आग हो, या फिर बदलते मौसम हों, जलवायु परिवर्तन के असर किसी न किसी सूरत में…

ग्रीन फेथ के परचम तले जलवायु निष्क्रियता के ख़िलाफ़ धार्मिक संगठन हुए एकजुट
दुनिया में ऐसी कोई भी धार्मिक परंपरा नहीं जो प्रकृति के विनाश का प्रतिबंध न लगाती हो। लेकिन इस प्रतिबन्ध के बावजूद, दुनिया भर की सरकारें और वित्तीय संस्थान प्रक्रति का दोहन कर रही हैं और उस पर लगाम लगाने की जगह ढील देती नज़र आती हैं। ये कहना है कैथोलिक धर्म प्रचारक नेता थेया…

ग्रीन रिकवरी के नाम पर किये वादे का सिर्फ़ 18 फ़ीसद हुआ खर्च: संयुक्त राष्ट्र
कोविड महामारी की शुरुआत हुए एक वर्ष से अधिक हो चुका है और आज अगर तमाम देशों की ग्रीन रिकवरी की प्रतिबद्धताओं के सापेक्ष उनके द्वारा किये गये खर्च का आंकलन करें तो हम पाते हैं कि वो खर्च किये वादों से काफ़ी कम है।संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) और ऑक्सफोर्ड युनिवेर्सिटी की आर्थिक सुधार…

चीन की ताज़ा पंचवर्षीय योजना में जलवायु के लिए अनिश्चिता के संकेत
इस साल, चीन में 14-वीं पंचवर्षीय योजना की शुरुआत होगी। लेकिन जलवायु परिवर्तन की चुनौती से लड़ने की नज़र से अगर इस योजना के बारे में मिल रही जानकारी को देखा जाए तो कहना गलत नहीं होगा कि ख़ास उम्मीद नहीं लगायी जा सकती इस योजना से। साल 1953 से, चीन सरकार अपने देश में…