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जलवायु परिवर्तन की इस रिपोर्ट पर होगी दुनिया भर की नज़र

Posted on July 25, 2021

इस साल की इकलौती इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की रिपोर्ट को मंजूरी देने के लिए, सोमवार, जुलाई 26 से अगस्त 6 तक, के बीच IPCC द्वारा एक वरचुअल मीटिंग का आयोजन किया जा रहा है।
इस बैठक में वर्किंग ग्रुप 1 (WG1) के फिज़िकल साइंस आधारित योगदान की समीक्षा कर अनुमोदित किया जाएगा।
आगामी नवंबर में ग्लासगो में होने वाली बहुप्रतीक्षित COP26 वार्ता से पहले इस वर्ष जारी होने वाली WG1 की रिपोर्ट एकमात्र IPCC रिपोर्ट होगी।
क्योंकि दुनिया भर के नीति निर्माताओं की नज़र इस रिपोर्ट के निष्कर्षों पर होगी इसलिए अब देखना यह है कि अंततः रिपोर्ट क्या पेश करती है।
ऐसा माना जा रहा है कि यह रिपोर्ट एमिशन के सोर्स एट्रिब्यूशन जैसे मुद्दों को कवर करेगी और साथ ही जलवायु पर मानव जाति का प्रभाव, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन स्तर, तापमान वृद्धि, जलवायु परिवर्तन पर प्रतिक्रिया, समुद्र स्तर में परिवर्तन, जंगलों की भूमिका और कार्बन सिंक के रूप में महासागर आदि मुद्दों पर केंद्रित होगी। इसके साथ यह रिपोर्ट इस बात पर भी प्रकाश डालेगी कि हमारे आज के फैसले कैसे हमारा कल निर्धारित करेंगे।
ध्यान रहे कि 1.5 ℃ के लक्ष्य तय करने वाली IPCC की 2018 की रिपोर्ट ने जलवायु पर सार्वजनिक विमर्श को स्थायी रूप से बदल दिया और जिसके बाद से सरकारें और उद्योग पहले से कहीं अधिक जांच के दायरे में आ गए हैं।
यदि सरकारें 1.5 डिग्री सेल्सियस के महत्वाकांक्षी पेरिस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए गंभीर हैं, तो दुनिया को 2030 तक उत्सर्जन को आधा करने और 2050 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन तक पहुंचने के लिए तत्काल, अभूतपूर्व, प्रणालीगत परिवर्तन की आवश्यकता है।
लेकिन तब से, उत्सर्जन में वृद्धि जारी है और सरकारों और उद्योग जगत की अपर्याप्त प्रतिक्रिया से पता चलता है कि उन्हें अभी भी वास्तव में पृथ्वी की बढ़ती गर्मी का एहसास नहीं हो रहा है।
क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर के मई के अपडेट से पता चला है कि जहाँ मौजूदा नीतियों ने हमें लगभग 2.9 ℃ की ट्रैक पर रखा है, वहीं जलवायु प्रतिज्ञाओं ने हमें 2-2.4 ℃ के बीच कहीं ट्रैक पर रखा है। इस वर्ष की शुरुआत में अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) की नेट ज़ीरो रिपोर्ट में कहा गया था कि 1.5 ℃ के लक्ष्य की ट्रैक पर दुनिया के होने का अर्थ है जीवाश्म ईंधन में नए निवेश का तत्काल अंत, और 2040 तक वैश्विक ऊर्जा क्षेत्र का नेट ज़ीरो।
IEA ने 20 जुलाई को अपनी कोविड रिकवरी रिपोर्ट में भी पाया कि वैश्विक USD 16 ट्रिलियन राहत खर्च में से केवल 2% राजकोषीय समर्थन स्वच्छ एनर्जी ट्रांज़िशन के लिए चला गया। सरकारों के पुनर्प्राप्ति उपायों द्वारा जुटाए गए कुल स्वच्छ ऊर्जा निवेश की मात्रा 2050 तक वैश्विक CO2 उत्सर्जन को शून्य तक पहुंचने के रास्ते पर लाने के लिए आवश्यक से बहुत कम है। रिपोर्ट में तो यह कहा गया है कि 2023 तक उत्सर्जन अब तक के अपने उच्चतम स्तर तक बढ़ जाएगा।
इस रिपोर्ट के जारी होने के ठीक दो दिन बाद, एक समाचार रिपोर्ट से पता चला कि हाल ही में हुई एक निजी बैठक में, सऊदी तेल मंत्री ने तथाकथित रूप से कहा कि “उनका देश तेल निकालने के नाम पर आख़िरी दम तक कटिबद्ध है हाइड्रोकार्बन के आख़िरी अणु के ज़मीन से बाहर निकलने तक जुटे रहेंगे।”
इस बीच, COP26 से पहले अमीर दुनिया से स्पष्ट कार्रवाई की मांग के लिए इस महीने 100 से अधिक गरीब देशों की सरकारें एक साथ शामिल हुईं। उनकी मांगों में गरीब देशों को जलवायु परिवर्तन से लड़ने और उसके अनुकूल होने के लिए धन, साथ ही उन प्रभावों के लिए मुआवज़े की मांग भी शामिल है।
यहां स्विस रे की रिपोर्ट पर भी नज़र रखने की ज़रूरत है, जिसमें 2050 तक मौजूदा उत्सर्जन मार्गों पर रहने से वैश्विक जीडीपी घाटे को 11-14% आंका गया है। लेकिन अगर उत्सर्जन में तेजी से कटौती की जाती है तो यह घाटा 4% तक सीमित हो जाएगा। यह अनुमानित नुकसान संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अनुमानों को बौना बना देता है, जिनमें कहा गया है कि विकासशील देशों को वर्तमान में जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने के लिए $ 70bn प्रति वर्ष की आवश्यकता है। यह आंकड़ा 2030 तक $ 140- $ 300bn प्रति वर्ष तक बढ़ सकता है, ऐसी उम्मीद है।
इसके विपरीत, जीवाश्म ईंधन सब्सिडी पर ब्लूमबर्गएनईएफ की हालिया रिपोर्ट में पाया गया कि 2019 में G20 सरकारों से जीवाश्म ईंधन के लिए प्रत्यक्ष समर्थन $636bn से ऊपर था – जो कि 2015 में पेरिस समझौते के अनुसमर्थन के बाद से सिर्फ 10% की कमी हुई। इस पांच साल की अवधि के दौरान हुए मूल्यांकन से पता चलता है कि तमाम राष्ट्रों ने सामूहिक रूप से जीवाश्म ईंधन सब्सिडी में $3.3trn प्रदान किये।

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