होली कम्युनिटी फेस्टिवल है, गणेश चतुर्थी कम्युनिटी फेस्टिवल है, दिवाली को क्यों नहीं बनाया जा सकता कम्युनिटी फेस्टिवल?
कैसा रहे कि इस बड़े त्योहार के महत्व को समझते हुए सरकार और नगरपालिकाएं दीवाली के दिन इलाके की प्रमुख इमारतों पर बेहतरीन सजावट करें, पर्यावरण के लिए संवेदनशीलता दिखाते हुए नगरीय प्रशासन इलेक्ट्रॉनिक आतिशबाज़ी, लेज़र वगैरह से, आयोजित करे, अमीर-ग़रीब सबको आतिशबाज़ी देखने का मौका मिले?
दीवाली वैसे भी सिर्फ़ हिन्दू त्योहार नहीं, भारत के कल्चर का हिस्सा है। इस दिन हर कोई पूजा भले न करे, लेकिन हिन्दू हो या मुस्लिम, हर कोई इस दिन से जुड़े कल्चर और इकॉनमी का हिस्सा ज़रूर है।
हर साल अब प्रदूषण के नाम से इसे लेकर तमाम आरोप प्रत्यारोप भी लगाए जाते हैं। किसी को इस त्योहार में धुआं और प्रदूषण दिखता है तो किसी को धर्म पर हमला दिखता है। लेकिन यह सब बातें फ़िज़ूल हैं।
न धर्म खतरे में है और न एक दिन की आतिशबाज़ी में देश प्रदूषित हो रहा है। 364 दिन और भी हैं जहाँ हमें प्रदूषण पर लग़ाम लगाने की ज़रूरत है।
वैसे फ़िलहाल तो बात पटाखों को ही पटल से हटाने पर हो रही है दीवाली के नए स्वरूप में।
साल 2021 के समाज में, सामाजिक सद्भाव बढ़ाने के लिए दीवाली जैसे बड़े कल्चरल फेस्टिवल को सरकार द्वारा प्रमोट करना चाहिए। ऐसी शानदार डिजिटल आतिशबाज़ी हो कि दुनिया रश्क़ करे। भारत सरकार लाइव स्ट्रीम करे उसे। दुनिया भर से लोग दीवाली स्पेशल टूर पर भारत आएं।
देश के हर हिस्से में ऐसी शानदार रौशनी की जाए कि वाक़ई नासा की सैटेलाइट, दीवाली पर, भारत का आसमान जगमग होता फ़ोटो में कैप्चर कर सके।
अब इस विचार पर कोई कहेगा इससे पटाखा उद्योग बन्द हो जाएगा, कोई कहेगा सरकार क्यों करे, ये हिंदुओं का त्योहार है इसलिए सरकार क्यों करे, इसमें बिजली खर्च होगी…ऐसे तमाम सवाल और तर्क उठना तय है।
लेकिन इस बिगड़ते सामाजिक सौहाद्र और ख़राब होते वातावरण में, एक दिन के लिए सही, किसी एक धर्म विशेष की आस्था और हर्षोल्लास पर सवाल उठना, आगे चल के समाज में खटास ही पैदा करता है। अब आज दीवाली की आलोचना होगी तो कल बकरीद पर जानवरों की क़ुर्बानी पर सवाल उठने लगेंगे।
अंततः फालतू की बहस में देश के लोग उलझेंगे और सामाजिक तानाबाना बिगड़ेगा। दुनिया बहुत आगे बढ़ चुकी है और भारत जैसे एस्पिरेशनल देश में इस सब में जनता का उलझना सही नहीं।
इसका इलाज है कि दीवाली के त्योहार को नैशनल फेस्टिवल की तरह सरकार प्रमोट करे। इससे जुड़ी टूरिज़्म प्रमोट करे। इसे ब्रांड इंडिया से जोड़े।
और आम जनता अपना त्योहार एक दूसरे से मिल कर, पूजा पाठ कर, मीठा नमकीन खा कर, तोहफ़े वगैरह दे कर मनाये।
पटाखों को ग़ैर ज़रूरी बना दिया जाए।
तमाम फ़ायदे होंगे। और सबसे बड़ी बात कि क्या नज़ारा होगा जब घण्टे-दो घण्टे लगातार आसमान जगमगा जाए और शहर की खास इमारतें बेहतरीन तकनीक से सजाई जाएं।
यह सोचने की बात है। अब ये फुटकर दीवाली मनाने का वक़्त गया। अब इसे भारत का एक कल्चरल इवेंट बनाया जाना चाहिए।
ख़ुशकिस्मती कहो, या बदक़िस्मती कहो, फ़िलहाल भारत का राजनैतिक नेतृत्व इवेंट बनाने और उसे मैनिज करने में माहिर है। क्यों न मौके का फ़ायदा उठाया जाए।
दीवाली को भी नैशनल इवेंट बनाने का वक़्त आ गया है।
दीवाली बने नैशनल फेस्टिवल, पूरे देश में हो संस्थागत रूप से इलेक्ट्रॉनिक आतिशबाज़ी।
बहुत सुंदर और सटीक अभिव्यक्ति ।
जनता जागे, सरकार जागे , समाज जागे । ईनशाअल्लाह अगले साल दिवाली community festival बन जाएगी ।
इंशाल्लाह, अमीन