निशान्त सक्सेना
भारत में फिलहाल जहां एक ओर नगरीय विकास की ज़रूरत बाद रही है, वहीं पर्यावरणीय स्थिरता की आवश्यकता भी बड़ी होती जा रही है.
जैसे-जैसे शहरों का विकास और विस्तार होता है, भूमि और संसाधनों की मांग में वृद्धि जारी रहती है, जिससे वायु प्रदूषण सहित कई पर्यावरणीय मुद्दे सामने आते हैं.
सड़कों पर बढ़ती भीड़ के चलते सड़कों को चौड़ा करना मजबूरी बनता है और इसमें सबसे पहले पेड़ों की बलि चढ़ती है. उन्हीं पेड़ों की जो अब तक सड़क पर चलती धुआँ उगलती गाड़ियों से होने वाले कार्बन उत्सर्जन को सोखने का काम करते थे. मगर चौड़ी सड़कों पर अब पेड़ लगाने की जगह नहीं, और सड़कों पर बढ़ती भीड़ के साथ गाड़ियों के धुएँ में भी उसी अनुपात में बढ़त हो रही है.
सर्बिया भी वायु प्रदूषण की समस्या से जूझ रहा था. उसके भी शहरों की सड़कों पर पेड़ उगाने की जगह कम होती जा रही थी. और तब, वहाँ के एक वैज्ञानिक ने ईजाद की एक ऐसी तकनीक जिसमें बहुत ही कम जगह में, दो बड़े पेड़ों जितनी कार्बन सोखने की क्षमता थी.
क्या है यह तकनीक?
इस खोज का नाम रखा गया लिक्विड 3 लेकिन ये काम करती है एक लिक्विड ट्री या पेड़ की तरह. इसके नाम में लिक्विड इसलिए है क्योंकि इसमें सूक्ष्म शैवाल या माइक्रो एलगी से भरा 600 लीटर पानी का टैंक होता है, जो प्रकाश संश्लेषण या फोटोसिंथेसिस के माध्यम से अपने आस पास के पर्यावरण की कार्बन डाइऑक्साइड को सोख कर उसे ऑक्सीजन में परिवर्तित कर देता है, बिलकुल किसी पेड़ की तरह.
इस तकनीक को बनाया है डॉ. इवान स्पैसोजेविक ने जो इंस्टीट्यूट फॉर मल्टी डिसिप्लिनेरी रिसर्च, यूनिवर्सिटी ऑफ बेलग्रेड से जुड़े हुए हैं. इस तकनीक के बारे में बताते हुए वो कहते हैं, “हमने सिंगल सेल वाली एलगी का इस्तेमाल किया है जो सर्बिया में तालाबों और झीलों में मौजूद हैं और नल के पानी में भी बढ़ सकती है. इनमें उच्च और निम्न तापमान के लिए प्रतिरोध क्षमता भी है. यह सिस्टम बिना किसी खास रखरखाव के काम करता है. इसमें डेढ़ महीने में पानी बदलने और कुछ मिनरल डालने की ज़रूरत होती है. इसमें बना बायोमास एक उत्कृष्ट उर्वरक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. सबसे बढ़िया बात है कि यह माइक्रो एलेगी अनिश्चित काल तक बढ़ती रहती हैं.”
पेड़ों की जगह लेना मकसद नहीं
लिक्विड 3 के पीछे की टीम का कहना है कि उनका लक्ष्य वनों या वृक्षारोपण योजनाओं की जगह लेना नहीं है. बल्कि इस प्रणाली का उपयोग उन शहरी इलाकों के लिए हैं जहां या तो पेड़ लगाने के लिए जगह नहीं है या फिर प्रदूषण का स्तर इतना तीव्र है कि एक पेड़ का जीवित रहना मुश्किल है. माइक्रो एलेगी ऐसी परिस्थिति में अधिक कारगर इसलिए हैं क्योंकि इस सेटअप में वे न सिर्फ जगह कम लेती हैं बल्कि उनकी उपयोगिता पर प्रदूषण के स्तर का कोई असर नहीं पड़ता.
लिक्विड 3 एक बेंच की तरह दिखता है और इसमें एक शेड है, चरजिंग की व्यवस्था है, और अंधेरे में रौशनी करने का भी इंतजाम है.
अपने इसी रचनात्मक, व्यावहारिक और अभिनव डिजाइन के कारण, लिक्विड 3 को संयुक्त राष्ट्र विकास परियोजना (यूएनडीपी) द्वारा जलवायु स्मार्ट शहरी विकास परियोजना के अंतर्गत 11 सर्वश्रेष्ठ अभिनव और स्मार्ट समाधानों में से एक के रूप में सम्मानित भी किया गया है.
भारत में प्रासंगिकता
भारत में विकास का पहिया दौड़ रहा है और उसकी कीमत हम प्रदूषण के रूप में चुका रहे हैं. लेकिन यह अनोखा सेटअप उस ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और वायु गुणवत्ता में सुधार करने में क्रांतिकारी भूमिका निभा सकता है.
विशेषज्ञों का मानना है कि लिक्विड ट्री जैसे इनोवेशन भारत के लिए वायु प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में आगे बढ़ने का रास्ता प्रदान कर सकते हैं. पर्यावरणविद डॉ सीमा जावेद का कहना है, “माइक्रो एलेगी से बना यह सेटअप, दस साल पुराने दो पेड़ या 200 वर्ग मीटर के बगीचे के बराबर कार्बन सोखने कि क्षमता रखता है. जब हम अपने शहरों में बढ़ती भीड़ को देखते हैं तो उनमें बढ़ते प्रदूषण के अनुपात में पेड़ लगाना संभव ही नहीं लगता. ऐसी परिस्थिति में यह लिक्विड ट्री वायु प्रदूषण से निपटने में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं.”
मेंटेनेंस का कम खर्च
जो बात इन लिक्विड ट्रीज़ को खास बनाती है वो है कि इन्हें न्यूनतम रखरखाव की आवश्यकता होती है और वे दशकों तक चल सकते हैं. पेड़ों की तरह इनपर कीटों और रोगों का कोई असर नहीं और न ही इन्हें पानी या छंटाई की आवश्यकता है. यह शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए एक अविश्वसनीय रूप से लागत प्रभावी समाधान है, खास तौर से घनी आबादी वाले क्षेत्रों में जहां जगह एक भारी कीमत पर उपलब्ध है.
इस तकनीक की मदद से शहरी क्षेत्रों में लिक्विड ट्रीज़ की मदद से भारत नयी अर्बन ग्रीन स्पेसेज बना सकता है और वायु गुणवत्ता में सुधार करते हुए शहरीकरण के पर्यावरणीय प्रभाव को कम कर सकता है.
बेलग्रेड यूनिवर्सिटी की इस तकनीक की एक और खास बात है जो इसकी प्रासंगिकता बढ़ाती है. इसमें प्रयोग होने वाली माइक्रो एलेगी का प्रयोग तमाम पर्यावरणीय पहलों में हो सकता है. इस अभिनव प्रयोग की मदद से माइक्रो एलेगी के नए नए प्रयोगों की संभावना बढ़ती है.
चलते चलते
भारत के शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए लिक्विड 3 एक अभिनव और अत्यधिक आशाजनक समाधान लगता है. इसे अपनाकर भारत न सिर्फ वायु की गुणवत्ता में सुधार कर सकता है, बल्कि अधिक टिकाऊ या ससटेनेबल शहर भी बना सकता है. फिलहाल इसके संभावित लाभ अकल्पनीय हैं, लेकिन इसकी भारत में सफलता तय करने में इसकी तकनीक की खरीद, इसके प्रॉडक्शन की कीमत, और फिर पूरी योजना से सही क्रियान्वयन पर निर्भर है. लेकिन जो भी हो, भारत समेत पूरी दुनिया की बेहतरी के लिए ऐसे नवीन समाधानों को अपनाने का समय आ गया है.