पैरिस समझौते के बाद से पवन और सौर ऊर्जा के कारण जी20 देशों में कोयले से बनने वाली बिजली की हिस्सेदारी में गिरावट आयी है। चौथे वार्षिक ग्लोबल इलेक्ट्रिसिटी रीव्यू के डेटा के ताजा विश्लेषण में यह दावा किया गया है। ऊर्जा थिंक टैंक एम्बर ने इस विश्लेषण को प्रकाशित किया है। हालांकि यह बदलाव उतनी तेजी से नहीं हो रहा है जितना कि ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिये जरूरी है। मगर फिर भी कुछ सकारात्मक संकेत जरूर मौजूद हैं।
डेटा से जाहिर होता है कि जी20 देशों में वर्ष 2022 में पवन और सौर ऊर्जा की संयुक्त हिस्सेदारी 13 प्रतिशत थी जो वर्ष 2015 के मुकाबले 5 फीसद ज्यादा थी। इस अवधि में पवन ऊर्जा की हिस्सेदारी दोगुनी हो गयी जबकि सौर ऊर्जा का योगदान चार गुना हो गया। नतीजतन, जी20 देशों में कोयले से बनने वाली बिजली की हिस्सेदारी जहां वर्ष 2015 में 43 प्रतिशत थी, वह साल 2022 में 39 फीसद रह गयी है। बिजली के अन्य स्रोतों की हिस्सेदारी आमतौर पर स्थिर ही रही और उसमें महज 1 या 2 प्रतिशत की गिरावट आयी।
आईपीसीसी की रिपोर्ट के मुताबिक पवन और सौर ऊर्जा के जरिये ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिये वर्ष 2030 तक उत्सर्जन में जरूरी कटौती के एक तिहाई हिस्से को हासिल किया जा सकता है। उत्साहजनक बात यह है कि पवन और सौर ऊर्जा से उत्सर्जन में होने वाली कटौती के आधे हिस्से से संदर्भ परिदृश्य के मुकाबले धन की वाकई बचत होगी।
एम्बर की वरिष्ठ विश्लेषक मावगोजाता वियात्रोस मोतेका ने कहा, ‘‘कोयले से बनने वाली बिजली की जगह पवन और सौर ऊर्जा को पूरी तरह अपनाना जलवायु परिवर्तन से जुड़ी समस्या के समाधान के लिहाज से कुंजी की तरह है। पवन और सौर ऊर्जा से न सिर्फ प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में कटौती होती है बल्कि इससे बिजली की लागत में भी गिरावट होती है। साथ ही इससे सेहत को नुकसान पहुंचाना वाला प्रदूषण भी कम होता है।’’
जी 20 देशों पर नजर डालें तो पवन और सौर ऊर्जा की दिशा में मिश्रित प्रगति हुई है। इनमें से जर्मनी (32%), ब्रिटेन (29%) और ऑस्ट्रेलिया (25%) फेहरिस्त में ऊपरी पायदानों पर हैं। वहीं, तुर्की, ब्राजील, अमेरिका, और चीन वैश्विक स्तर के मुकाबले लगातार बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। दूसरी और रूस, इंडोनेशिया और सऊदी अरब निचली पायदानों पर हैं। इन देशों द्वारा उत्पादित बिजली के कुल मिश्रण में पवन और सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी लगभग शून्य ही है।
वर्ष 2022 तक जी20 में शामिल 13 देश अपने कुल बिजली उत्पादन में से आधे हिस्से के लिए जीवाश्म ईंधन पर निर्भर थे। सऊदी अरब अपने यहां पैदा होने वाली कुल बिजली का लगभग 100% हिस्सा तेल और गैस से बनाता है। सऊदी अरब के बाद दक्षिण अफ्रीका (86%), इंडोनेशिया (82%) और भारत (77%) ऐसे देश हैं जो बिजली उत्पादन के लिए जीवाश्म ईंधन खासकर कोयले पर सबसे ज्यादा निर्भर हैं।
जी20 के ओईसीडी देश वर्ष 2030 तक कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध ढंग से खत्म करने को दे रहे हैं रफ्तार–
जी20 की प्रगतिशील अर्थव्यवस्थाओं (ओईसीडी) से वर्ष 2030 तक कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने की अपेक्षा रखी जाती है। इन प्रगतिशील अर्थव्यवस्थाओं में कोयले से बनने वाली बिजली के उत्पादन में 42% की गिरावट आई है। वर्ष 2015 में जहां यह उत्पादन 2624 टेरावाट था, वहीं 2022 में यह घटकर 1855 टेरावाट रह गया।
जी20 में से ब्रिटेन ने कोयले से बनने वाली बिजली के उत्पादन में सबसे तेजी से कटौती की है। वर्ष 2015 में पेरिस समझौते पर दस्तखत करने के बाद इस देश ने कोयले से बनने वाली बिजली के उत्पादन में 93% की कटौती की है। वर्ष 2015 में ब्रिटेन जहां कुल बिजली का 23% हिस्सा कोयले से बना रहा था, वहीं वर्ष 2022 में यह मात्र 2% रह गया है। इसी अवधि में इटली ने भी अपने यहां कोयले से बनने वाली बिजली के उत्पादन को आधा कर दिया है। वहीं, अमेरिका और जर्मनी ने इसमें करीब एक तिहाई की कटौती की है। यहां तक कि कोयले पर काफी हद तक निर्भर ऑस्ट्रेलिया ने भी वर्ष 2015 के 64% के मुकाबले 2022 में कोयले से बनने वाली बिजली की हिस्सेदारी को घटाकर 47% कर लिया है। जी20 की उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में जापान अभी पीछे रह गया है और उसने कुल ऊर्जा उत्पादन में कोयले से बनने वाली बिजली की हिस्सेदारी में कोई कटौती नहीं की है। कुल उत्पादन में कोयला आधारित बिजली का योगदान लगभग एक तिहाई का है।
पवन और सौर ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि करना ओईसीडी देशों द्वारा अपने यहां कोयले से बनने वाली बिजली के उत्पादन में कटौती करने में मिली कामयाबी का एक महत्वपूर्ण कारक है। ब्रिटेन और जर्मनी ने कुल बिजली उत्पादन में पवन ऊर्जा की सबसे ज्यादा हिस्सेदारी स्थापित की है। वर्ष 2022 में यह क्रमश 25% और 22% थी। वहीं, 2022 में ही ऑस्ट्रेलिया और जापान क्रमशः 13 और 10% के साथ जी 20 देशों में सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी के लिहाज से शीर्ष पर थे।
परिपक्व अर्थव्यवस्थाओं में उत्साहजनक वृद्धि के बावजूद कोयले से बनने वाली बिजली के उत्पादन में इस दशक में और भी तेजी से कमी लाने की जरूरत है। आईपीसीसी के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए इस दशक में कोयले से बनने वाली बिजली के उत्पादन में 87% की कटौती करनी ही होगी। इसे वर्ष 2021 के 10059 टेरावाट से घटाकर वर्ष 2030 में 1153 टेरावाट करना होगा।
हालांकि पेरिस समझौते के बाद से जी-20 देशों द्वारा उत्पादित बिजली में कोयले से बनने वाली बिजली की हिस्सेदारी कम हुई है लेकिन कोयला आधारित बिजली के पूर्ण उत्पादन में बढ़ोत्तरी देखी गई है। ऐसा इसलिए है क्योंकि देशों ने बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए कोयले का रुख किया है। जहां वर्ष 2015 में जी-20 देशों ने 8565 टेरावाट कोयला आधारित बिजली का उत्पादन किया था, वहीं साल 2022 में 11% वृद्धि के साथ यह 9475 टेरावाट हो गया। इस बढ़ोत्तरी के लिए पांच अहम देश जिम्मेदार हैं।
पांच जी20 देश अभी तक कोयला उत्सर्जन के चरम पर नहीं पहुंचे
वर्ष 2015 से अब तक सिर्फ पांच जी20 देशों ने ही शुद्ध रूप से कोयला बिजली उत्पादन में वृद्धि देखी है। इनमें चीन (+34%, +1374 टेरावाट), भारत (+35%, +357 टेरावाट), इंडोनेशिया (+52%, +65 टेरावाट), रूस (+31%, +47 टेरावाट) और तुर्की (+50%, +37 टेरावाट) शामिल है। इनमें से चीन और भारत इस अवधि में कोयले की हिस्सेदारी में कटौती करने में सक्षम हैं क्योंकि यह दोनों ही देश अपने यहां बिजली की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए पवन तथा सौर ऊर्जा उत्पादन को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। चीन ने वर्ष 2015 में अपने कुल ऊर्जा उत्पादन का 70% हिस्सा कोयले के इस्तेमाल से पैदा किया था। वर्ष 2022 में यह हिस्सेदारी घटकर 61 फीसद रह गई है। हालांकि भारत ने इस मामले में छोटी सी ही कटौती की है। वर्ष 2015 में जहां कोयले से बनने वाली बिजली की हिस्सेदारी 76% थी वह वर्ष 2022 में घटकर 74 फीसद हो गई है। हालांकि इंडोनेशिया, रूस और तुर्की के कुल बिजली उत्पादन में कोयले से बनने वाली बिजली की हिस्सेदारी में इजाफा ही हुआ है।
यह इस बात के संकेत हैं कि यह देश कोयले से होने वाले प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन के मामले में शीर्ष के नजदीक पहुंच रहे हैं, क्योंकि स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन में वृद्धि इतनी तेजी से हो रही है कि जिससे मांग में होने वाली संपूर्ण बढ़ोत्तरी को पूरा किया जा सकता है। वर्ष 2022 में चीन में सौर तथा पवन ऊर्जा की मदद से बिजली की मांग में हुई कुल बढ़ोत्तरी के 69% हिस्से को पूरा किया जा सका। वहीं, सभी अक्षय ऊर्जा स्रोतों की मदद से ऊर्जा की मांग में वृद्धि के 77% हिस्से को पूरा कर लिया गया वर्ष 2015 से 2022 के बीच गुजरे 7 वर्षों के दौरान एशिया में बिजली की मांग में हुई वृद्धि का आधा से ज्यादा हिस्सा 52% स्वच्छ ऊर्जा के जरिए पूरा किया गया। यह इससे पहले के 7 वर्षों के दौरान हासिल किए गए 26% के मुकाबले 2 गुना है। प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन का शीर्ष पर पहुंचना तो पहला कदम है। जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल में चरणबद्ध ढंग से कटौती कितनी तेजी से की जाती है, यह सरकारों द्वारा पवन और सौर ऊर्जा को अपनाने में तेजी लाने के लिए की जाने वाली कार्रवाइयों पर निर्भर करेगा।
एम्बर की वरिष्ठ विश्लेषक मावगोजाता वियात्रोस मोतेका ने कहा, “उत्सर्जन में कटौती लाने के लिए ऊर्जा क्षेत्र का डीकार्बनाइजेशन एकमात्र सबसे बड़ा जरूरी कदम है ज्यादातर जी-20 देश साफ ऊर्जा प्रणाली की तरफ पहले ही रुख कर चुके हैं लेकिन अब इस काम में और तेजी लाने की जरूरत है। इसका सबसे सस्ता और सबसे तेज रास्ता यही है कि पवन और सौर ऊर्जा जैसी स्थापित प्रौद्योगिकियों को तेजी से अपनाया जाए और कार्बन कैप्चर वाले जीवाश्म ईंधन जैसी असंगत प्रौद्योगिकियों पर दांव न लगाया जाए। जी7 देशों के सदस्यों ने वर्ष 2035 तक अपने ऊर्जा क्षेत्रों को डीकार्बनाइज करने पर सहमति दे दी है और सौर तथा अपतटीय ऊर्जा को अपनाने में तेजी लाने की अपनी वचनबद्धताओं को और साफ कर दिया है। हालांकि जी20 देशों में बिल्कुल इसी तरह का विचार-विमर्श अभी तक नहीं हुआ है लेकिन क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की राह में यही सबसे बड़ी बाधा है इसलिए इसे एजेंडा में सबसे ऊपर रखने की जरूरत है।
अगले साल जी20 देशों की मेजबानी करने जा रहे ब्राजील का जी20 देशों में स्वच्छ ऊर्जा में हिस्सेदारी के लिहाज से अव्वल स्थान है। वर्ष 2022 में ब्राजील ने अपनी कुल उत्पादित बिजली का 89% हिस्सा अक्षय स्रोतों की मदद से किया। इनमें से 63% हिस्सा पनबिजली, 12% हिस्सा पवन ऊर्जा और 3% हिस्सा सौर ऊर्जा का रहा। वर्ष 2022 में जीवाश्म ईंधन से मात्र 11% बिजली ही पैदा की गई और उसमें भी गैस की लगभग तीन चौथाई हिस्सेदारी थी।
वर्तमान में जी20 की मेजबानी कर रहा भारत अपनी बिजली प्रणाली के डीकार्बनाइजेशन के मामले में बहुत पीछे चल रहा है। भारत दक्षिण अफ्रीका के बाद दूसरा ऐसा देश है जो कोयले पर सबसे ज्यादा निर्भर है। मगर यह अपनी कुल बिजली उत्पादन का 9% हिस्सा सौर और पवन ऊर्जा से पैदा कर रहा है।
एम्बर के हेड ऑफ़ डाटा इनसाइट्स डेवी जोंस ने कहा, “साफ बिजली उत्पादन प्रणाली बनाने के मामले में ब्राजील भारत से मीलों आगे है। जी20 के मेजबान एक-दूसरे की कामयाबी से सीख सकते हैं। भारत सोलर किंग बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। पिछले एक दशक के दौरान सौर ऊर्जा उत्पादन में 45 गुना की वृद्धि हुई है और यह वर्ष 2022 में कुल उत्पादन में सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी 5% हो गई है। ब्राजील ने हाइड्रो इलेक्ट्रिक ऊर्जा के मजबूत आधार के साथ शुरुआती बढ़त हासिल की लेकिन वह यहीं नहीं रुका बल्कि उसने पवन ऊर्जा के क्षेत्र में भी प्रभावशाली तरक्की की और पिछले एक दशक के दौरान उसके पवन ऊर्जा उत्पादन में 16 गुना बढ़ोत्तरी हुई है और वर्ष 2022 में ब्राजील के कुल ऊर्जा उत्पादन में पवन ऊर्जा की हिस्सेदारी 12% हो गई है।