वायु प्रदूषण पूरी दुनिया में होने वाली मौतों का दूसरा सबसे बड़ा सबब बन के सामने आया है। स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट (SOGA) 2024 के पांचवें संस्करण के मुताबिक यह दूसरा सबसे बड़े ग्लोबल हेल्थ रिस्क फैक्टर है।कुल मौतों में दिल की बीमारी, पक्षाघात (स्ट्रोक), मधुमेह (डायबिटीज), फेफड़ों का कैंसर और श्वसन संबंधी गंभीर बीमारियों जैसे गैर संचारी रोगों की मौतों के भार में करीब 90 प्रतिशत हिस्सेदारी वायु प्रदूषण से होने वालीहै।
साल 2021 में वायु प्रदूषण की वजह से 81 लाख लोगों की मौत हुई थी। इसके चलते यह तम्बाकू और शरीर में पोषक तत्वों की कमी को पछाड़कर दुनिया में मौतों का दूसरा सबसे बड़ा जोखिम बन गया है। अमेरिका के एक स्वतंत्र गैर वित्तीय लाभकारी शोध संस्थान हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट (एचईआई) ने आज यह रिपोर्ट जारी की है।
पहली बार यूनिसेफ की सहभागिता से जारी की गयी इस रिपोर्ट में पाया गया है कि पांच साल से कम उम्र के बच्चों पर खासतौर पर खतरा है। उनमें समय से पहले ही जन्म, पैदाइश के वक्त वजन कम होना, दमा और फेफड़ों की बीमारियों की सम्भावना है। वर्ष 2021 में पांच साल से कम उम्र के 2 लाख 60 हजार 600 से ज्यादा बच्चों की मौतों को वायु प्रदूषण के
प्रभावों से जोड़ा गया था। इस तरह दक्षिण एशिया में कुपोषण के बाद वायु प्रदूषण पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौतों के लिहाज से दूसरा सबसे बड़ा जोखिम बन गया है। पूरी दुनिया में सात लाख से ज्यादा बच्चों की मौतों को वायु प्रदूषण के सम्पर्क में आने से जोड़कर देखा गया था। इनमें से पांच लाख बच्चों की मौतों को घर में खाना पकाने के लिये जीवाश्म ईंधन
के इस्तेमाल से उत्पन्न होने वाले घरेलू वायु प्रदूषण से जोड़ा गया था।
कुछ महत्वपूर्ण बिंदु :
1. वायु प्रदूषण दक्षिण एशिया में मौतों का अग्रणी जोखिम कारक बना हुआ है।
2. दक्षिण एशिया में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की सेहत पर कुछ सबसे बड़े प्रभाव पड़ रहे हैं। वर्ष 2021 में वायु प्रदूषण के कारण पांच साल से कम उम्र के सबसे ज्यादा बच्चों की मौत भारत में ही हुई।
3. अच्छी खबर यह है कि वायु प्रदूषण से जोड़कर देखी जा रही पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौतों का आंकड़ा समय के साथ घट रहा है।
4. द्वितीयक प्रदूषणकारी तत्व कहे जाने वाले ओजोन के स्तर और ओजोन के कारण होने वाली मौतों की संख्या समय के साथ बढ़ रही है।
5. वर्ष 2020 में भारत में जहां ओजोन के सम्पर्क में आने से 93 हजार मौतें होने की बात कही गयी थी, वहीं 2021 में यह आंकड़ा 2 लाख 72 हजार हो गया। नाइट्रोजन डाईऑक्साइड (एनओ2), जिसमें बचपन में अस्थमा के विकास पर एनओ2 के संपर्क का प्रभाव शामिल है। यातायात के कारण निकलने वाला धुआं एनओ2 का एक प्रमुख स्रोत है, जिसका मतलब है कि घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों में अक्सर एनओ2 के संपर्क और उससे स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों का उच्चतम स्तर देखा जाता है।
6. इस रिपोर्ट में नाइट्रोजन डाईऑक्साइड के सम्पर्क के स्तरों और उनसे सम्बन्धित स्वास्थ्य प्रभावों को भी शामिल किया गया है।