प्रधान मंत्री मोदी के ग्लासगो में भारत के साल 2070 तक नेट ज़ीरो होने की घोषणा के बाद से नेट ज़ीरो ख़ासा चर्चित शब्द बन गया है। इतना कि गूगल पर “नेट ज़ीरो क्या होता है” लिखते ही 0.74 सेकंड में 3,78,00,00,000 नतीजे सामने आ गए।
लेकिन भारत के नेट ज़ीरो होने के लिए सबसे ज़रूरी है भारत के निवासियों का अपने कार्बन फुट प्रिंट कम करना और कार्बन न्यूट्रल होना। अब आप सोच रहे होंगे कि अभी तक तो नेट ज़ीरो में ही उल्झे थे, हमने ये दो नए शब्द और सामने रख दिए उलझाने के लिए।
तो इससे पहले कि हम आगे बढ़ें, चलिए पहले समझ लें ये नेट ज़ीरो क्या होता है और क्या होता है कार्बन फुट प्रिंट और कैसे बन सकते हैं हम कार्बन न्यूट्रल।
नेट ज़ीरो का मतलब है वातावरण में उत्सर्जित कार्बन और उसमें से निकाले गए कार्बन के बीच एक संतुलन प्राप्त करना। मतलब जितना कार्बन हम उत्सर्जित कर रहे हैं, उतना ही हम वातावरण से निकाल रहे हैं या अपनी गतिविधियों के माध्यम से कम कर रहे हैं। मतलब जितना प्लस हो रहा उतना ही मायनस हो रहा है।
लेकिन हम कार्बन उत्सर्जन कम तब कर पाएंगे, जब हमें पता हो हम कितना उत्सर्जन कर रहे हैं। तो अब ये समझिये कि किसी व्यक्ति, संगठन या समुदाय की गतिविधियों के परिणामस्वरूप वातावरण में उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को उस व्यक्ति, संगठन या समुदाय का कार्बन फुट प्रिंट कहते हैं। जैसे आप डाइटिंग में कैलोरी काउंट करते हैं, वैसे ही कार्बन फुट प्रिंट भी काउंट होता है। कार्बन फुट प्रिंट काउंट करने से ही हम कार्बन न्यूट्रल होने के लिए कुछ कर पाएंगे।
सरल शब्दों में कहें तो कार्बन न्यूट्रल होना अपने कार्बन फुट प्रिंट को नेट ज़ीरो करना है। अब आप और हम कोई पेड़ तो हैं नहीं जो कार्बन सोख कर कार्बन न्यूट्रल हो जायेंगे। आपको और हमें तो अपनी रोज़ मर्रा की गतिविधियों से ही ऐसा कुछ करना होगा कि हमारा कार्बन उत्सर्जन कम हो।
क्या आपको पता है 1 लीटर पेट्रोल जलाने से लगभग 2.3 किलोग्राम CO2 उत्पन्न होती है? और क्या आपको अंदाज़ा है कि अगर आप रात में एक 60 वॉट के बल्ब को आठ घंटे के लिए जलता छोड़ देते हैं, तो आप लगभग 150 किलो ग्राम CO2 उत्सर्जन के ज़िम्मेदार होते हैं? आप को जान कर हैरानी होगी कि वैश्विक स्तर पर खाद्य पदार्थों को फेंकने से लगभग 4.4 गिगा टन CO2, या कुल मानवजनित ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन का लगभग 8% उत्पन्न होता है।
अब शायद आप समझ पायें कि क्यों एक विकासशील देश के लिए इतना आसान नहीं नेट ज़ीरो होना। दरअसल विकास के लिए ज़रूरी है ऊर्जा, और जीवाश्म ईंधन से मिली उर्जा फ़िलहाल सबसे सस्ती और सुगम है और इस ऊर्जा की मदद से इन देशों में अपने नागरिकों के लिए बुनियादी सुविधाएँ, जैसे सड़क, बिजली, पानी, ख़ुराक, आवास और रोज़गार आदि को सुनिश्चित किया जाता है।
भारत वैसे तो दुनिया का चौथा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक है, लेकिन 4.79 मेट्रिक टन के प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन के वैश्विक औसत के आगे भारत का 1.9 मेट्रिक टन का प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन काफ़ी कम है।
तमाम व्यव्हारिक्ताओं के चलते विकासशील देशों के लिए अगर कार्बन उत्सर्जन कम करना मुश्किल है तो एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि कार्बन उत्सर्जन के चलते हो रहे जलवायु परिवर्तन से सबसे ज़्यादा नुक्सान इन्हीं विकासशील देशों को होता है। नुकसान इसलिए क्योंकि इन देशों की अधिकांश जनता बुनियादी ज़रूरतों से जूझ रही होती है और वो इतनी साधन सम्पन्न नहीं कि जलवायु की मार झेल पाए।
अपने देश की इसी सच्चाई को याद रखते हुए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी लगातार वैश्विक पटल पर जलवायु कार्यवाई के मामले में नेतृत्व करते नज़र आते हैं। फिर चाहें इंटरनेशनल सोलर अलायंस की शक्ल में दुनिया को सौर ऊर्जा का महत्व समझाना हो या भारत के लिए नेट ज़ीरो की अहमियत समझते हुए साल 2070 की समयसीमा सेट करना हो, प्रधान मंत्री मोदी लगातार देश में जलवायु कार्यवाई का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं।
लेकिन भारत को अगर अपने जलवायु लक्ष्य हासिल करने हैं तो देश की सर्वाधिक जनसंख्या वाले प्रदेश, उत्तर प्रदेश, को भी सहयोग करना होगा। यह एक सौभाग्य की बात है कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार इस संदर्भ में प्रधान मंत्री मोदी के साथ कंधे से कंधा मिला कर चलती नज़र आ रही है।
ग्लासगो में हुई संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन की 26वीं बैठक, COP26, के ठीक पहले, योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में जलवायु कार्यवाई की दशा और दिशा को बेहतर करने के लिए एक दो दिवसीय जलवायु महासम्मेलन आयोजित किया।
देश के नेट ज़ीरो लक्ष्यों में अपना बहुमूल्य सहयोग देने के लिए योगी सरकार ने बीते कुछ समय में तमाम महत्वपूर्ण फ़ैसलों के माध्यम से एक सकारात्मक पहल की है। इसी क्रम में सरकार ने जीआइज़ेड के सहयोग से बी कार्बन न्यूट्रल एप लांच की है, जिसकी मदद से आप अपना कार्बन फुटप्रिंट जान सकते हैं।
इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए प्रदेश के पर्यवरण सचिव, आशीष तिवारी, ने बताया, “हम उसी को मैनिज या नियंत्रित कर सकते हैं, जिसे हम मेज़र या नाप सकते हैं। इसलिए यह बहुत ज़रूरी था कि हम सबसे पहले अपने निवासियों को उनके कार्बन फुटप्रिंट जानने का मौका दें। अब, जब इस एप के माध्यम से आपके सामने अपने कार्बन फुटप्रिंट की गणना होगी और आपको उसके नुकसान पता होंगे, तो ज़ाहिर है आप बेहतर सुधारात्मक कार्यवाई कर पाएंगे।”
आगे, जीआईज़ेड में सीनियर एडवाइजर, कीत्रिमान अवस्थी बताते हैं, “बिना जनता के सहयोग से जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ जंग नहीं जीती जा सकती। यह एप जनता के लिए एक बुनियादी हथियार है जिसकी मदद से यह लड़ाई अपेक्षाकृत आसान होने वाली है। इसकी मदद से आपको अपने दुश्मन के आकार और उसके स्वरुप की जानकारी मिलेगी।” यह एप इस लिंक पर क्लिक कर गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड की जा सकती है।
इस बात में दो राय नहीं कि अगर जनता इस समस्या का कारण है तो जनता के पास ही इसका समाधान भी है। जब जनता की ऊर्जा मांग कम होगी तब ही उसका उत्पादन कम होगा, और साथ ही कम होगा कार्बन का उत्सर्जन। साथ ही, जब जनता जागरूक होगी तब ही कार्बन न्यूट्रल होने के लिए कुछ कर पायेगी। अब देखना यह है कि इस एप की मदद से आप अपने कार्बन फुटप्रिंट करने के लिए क्या कदम उठाते हैं और कब तक कार्बन न्यूट्रल हो पाते हैं।
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