भारत के शीर्ष कोयला खनन और कोयला पावर प्लांट पर निर्भर जिलों के लिए जस्ट ट्रांजिशन (न्यायसंगत परिवर्तन) का अर्थ क्या होगा और कैसे जस्ट ट्रांजिशन लाया जा सकता इसे समझने के इरादे से दिल्ली स्थित एनवायरनमेंटल थिंक टैंक, इंटरनेशनल फोरम फॉर एनवायरनमेंट, सस्टेनेबिलिटी एंड टेक्नोलॉजी (iFOREST) ने कोरबा जिले का चयन किया गया और उसका अध्ययन किया।
“कोरबा: प्लानिंग ए जस्ट ट्रांजिशन फॉर इंडियाज बिगेस्ट कोल एंड पावर डिस्ट्रिक्ट” शीर्षक की इस रिपोर्ट को श्री टी.एस. सिंह देव, पंचायत और ग्रामीण विकास मंत्री और स्वास्थ्य मंत्री, छत्तीसगढ़ सरकार, श्री अनिल कुमार जैन, सचिव, कोयला मंत्रालय और श्री अमिताभ कांत, सीईओ, नीति आयोग ने ऑनलाइन ईवेंट के माध्यम से रिलीज़ किया।
कोरबा देश के 16% से अधिक कोयले का उत्पादन करता है। यह बिजली उत्पादन का केंद्र भी है, जिसकी थर्मल पावर क्षमता 6,428 मेगावाट है। इन सब वजहों से इस अध्ययन मेन कुछ महत्वपूर्ण बातें सामने आयीं।
अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष
* कोरबा 40% से अधिक जनजातीय आबादी वाला एक अनुसूची V जिला है। यह एक आकांक्षी जिला है जहां 41% लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। जिले की 32% से अधिक आबादी ‘बहुआयामी रूप से गरीब’ (मल्टीडायमेनसनल) है, एवं स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी सुविधाओं तक लोगों की पहुंच सीमित है ।
* कोरबा नौकरियों और विकास के लिए कोयला उद्योग पर अत्यधिक निर्भर है। कोरबा के सकल घरेलू उत्पाद का 60% से अधिक हिस्सा और पांच में से एक रोजगार कोयला खनन और कोयले से संबंधित उद्योगों से है।
* कोयला केंद्रित अर्थव्यवस्था ने अन्य आर्थिक क्षेत्रों जैसे कृषि, वानिकी, विनिर्माण और सेवाओं के विकास में बाधा डाला है। खराब सामाजिक-आर्थिक स्थिति और कोयला अर्थव्यवस्था पर उच्च निर्भरता होने के कारण यह खानों और उद्योगों के अनियोजित बंद होने से अत्यधिक संवेदनशील है। इसलिए, कोयला उद्योग के अनियोजित तरीके से बंद होने पर गंभीर सामाजिक-आर्थिक परिणाम होंगे।
* कोरबा में 13 चालू खदानें हैं, और 4 खदानें पाइपलाइन में हैं। साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) की वर्तमान योजनाओं के अनुसार, कोरबा का कोयला उत्पादन 2025 तक 180 मिलियन टन तक पहुंच जाएगा। चालू खदानों में से तीन लाभदायक खदानें – गेवरा, कुसमुंडा और दीपका- 95% कोयले का उत्पादन करती हैं। 8 भूमिगत खदानें घाटे में चल रही हैं।
* कोरबा की कोयला खदानों का भंडार खत्म हो रहा हैं और आधी थर्मल पावर प्लांट 30 साल से ज्यादा पुरानी है। गेवरा और कुसमुंडा जैसी बड़ी खदानों का भंडार 15 वर्ष से भी कम का रह गया है। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण की सिफारिश के अनुसार, 2940 मेगावाट क्षमता (वर्तमान क्षमता का 46%) वाली 10 इकाइयों को 2027 तक रिटायर किया जा सकता है।
* ‘वर्तमान नीति परिदृश्य’ के तहत, जो भारत के 2070 के नेट-जीरो लक्ष्य के साथ संरेखित है, कोरबा में सभी कोयला खदानों को 2050 तक और पावर प्लांट को 2040 तक चरणबद्ध तरीके के साथ बंद किया जा सकता है।
* अगले कुछ वर्षों में कोरबा में सभी 8 लाभहीन भूमिगत खदानों को बंद करना साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) के लिए फायदे का सौदा है, क्योंकि संसाधनों को जस्ट ट्रांजिशन शुरू करने के लिए डायवर्ट किया जा सकता है।
* कोरबा में औपचारिक कार्यबल बढती उम्र वाले है – एसईसीएल और एनटीपीसी के कम से कम 70% कर्मचारी 40-60 वर्ष की आयु के हैं। इसलिए ट्रांजिशन से औपचारिक कार्यबल को कम चुनौती है।
* सबसे बड़ी चुनौती अनौपचारिक श्रमिकों (जो कोयला उद्योग में 60% से अधिक हैं) का पुन: रोजगार है। उन्हें जॉब सपोर्ट और रीस्किलिंग की आवश्यकता होगी। नई ग्रीन अर्थव्यवस्था के लिए कौशल विकसित करना भी चुनौती है।
अध्ययन के निष्कर्षों के आधार पर, रिपोर्ट ने कोरबा के लिए एक जस्ट ट्रांजिशन प्लानिंग फ्रेमवर्क भी विकसित किया है, जो अन्य जिलों के लिए भी एक खाका हो सकता है।
कोरबा में जस्ट ट्रांजिशन के लिए आवश्यक होगी:
अर्थव्यवस्था का पुनर्गठन: जिले के सकल घरेलू उत्पाद में कोयले के योगदान को कम करने और अन्य क्षेत्रों के योगदान को बढ़ाने के लिए कोरबा की अर्थव्यवस्था का पुनर्गठन करना होगा। इसके लिए कृषि, वानिकी और मत्स्य पालन क्षेत्रों, स्थानीय संसाधनों पर आधारित लो-कार्बन उद्योगों का समर्थन, साथ ही कृषि और खाद्य प्रसंस्करण, गैर-लकड़ी वन उत्पाद (NTFP) प्रसंस्करण, नवीकरणीय ऊर्जा आधारित उद्योग और सेवा क्षेत्र को मजबूत करने में निवेश की आवश्यकता होगी है। शिक्षा और कौशल विकास में भी निवेश जरूरी होगा।
कोयला खनन और बिजली कंपनियों – एसईसीएल और एनटीपीसी – की भूमिका ट्रांजिशन के लिए महत्वपूर्ण होगी। अपने बिज़नस पोर्टफोलियो को पुनर्गठन और ग्रीन बिज़नस में निवेश करने से रोजगार का सृजन होगा। साथ ही कोयला खदानों और कोयले पर निर्भर उद्योगों के बंदी से होने वाले राजस्व के नुकसान की भरपाई करने में मदद मिलेगी।
भूमि और बुनियादी ढांचे का पुनर्निमाण: वर्तमान में 24000 हेक्टेयर भूमि और विशाल बुनियादी संरचनाए कोयला और बिजली कंपनियों के पास है। साईंटिफ़िक क्लोज़र और खनन भूमि का पुनर्निमाण एक नई ग्रीन इकॉनमी के निर्माण और निवेश को आकर्षित करने के लिए आवश्यक है।
कार्यबल का रीस्किलिंग और स्किलिंग : कोयला खनन और पावर प्लांट में औपचारिक श्रमिकों के लिए सेवानिवृत्ति लाभ और नए उद्योगों के लिए कार्यबल का कौशल विकास आवश्यक होगा। अनौपचारिक श्रमिकों को रोजगार और आय के लिए सरकारी सहायता की आवश्यकता होगी।
राजस्व प्रतिस्थापन: कोरबा में कोयला खनन वर्तमान में 7000 करोड़ (यूएस $1.0 बिलियन) रुपये से अधिक रॉयल्टी, डीएमएफ फंड और कोयला उपकर से योगदान करता है। यह केंद्र, राज्य और जिले के राजस्व के लिए महत्वपूर्ण स्रोत हैं। इस राजस्व को प्रतिस्थापित करने के लिए एक प्रगतिशील आर्थिक विविधीकरण योजना की आवश्यकता होगी।
जिम्मेदारी के साथ सामाजिक और पर्यावरणीय निवेश : कोरबा को स्वास्थ्य, शिक्षा, पानी की आपूर्ति जैसी सुविधाओं और भौतिक बुनियादी ढांचे में बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता होगी ताकि जस्ट ट्रांजिशन को लागू किया जा सके। जिला खनिज फाउंडेशन (डीएमएफ) फंड में लगभग 500-550 करोड़ रुपये सालाना एकत्र होता है। यह फ़ंड सामाजिक और भौतिक बुनियादी ढांचे में निवेश करने के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है । जस्ट ट्रांजिशन के लिए घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों तरह के वित्तीय फ़ंड की आवश्यकता होगी। ट्रांजिशन फाइनेंसिंग के लिए डीएमएफ फंड, सीएसआर फंड और कोल सेस सबसे महत्वपूर्ण स्थानीय स्रोत होंगे। ये तीनों वर्तमान में लगभग 5300 करोड़ ($ 750 मिलियन) योगदान करते है, जो 2035 तक बढ़कर 7500 करोड़ (1.0 बिलियन अमेरिकी डॉलर) हो जाएगा। कुल मिलाकर, कोयला सेस ग्रीन फंड के लिए सबसे महत्वपूर्ण हो सकता है।
रिपोर्ट पर अपनी प्रतिकृया देते हुए श्री टी.एस. सिंहदेव ने कहा, “न्याय” सबसे महत्वपूर्ण पहलू होगा जस्ट ट्रांसिशन के लिए, और इसे संबोधित करने की आवश्यकता होगी। यह न केवल राज्य के हस्तक्षेप के माध्यम से, बल्कि विभिन्न स्तरों पर एक सहयोगात्मक प्रयास के माध्यम से संभव होगा।” उन्होंने कहा, “जैसे ही कोयला फेज आउट होगा है, कोरबा जैसे कोयला क्षेत्रों में रोजगार सृजन के लिए कौन सा उद्योग आ सकता है, यह एक बड़ा सवाल होगा- इस पर विचार करने की आवश्यकता है।”
श्री अनिल कुमार जैन ने कहा कि “स्थानीय दृष्टिकोण न्यायपूर्ण परिवर्तन सुनिश्चित करने के लिए महत्वपुर्ण है, क्योंकि जिलों में अलग-अलग मुद्दे हैं। एक रणनीतिक पहल की आवश्यकता होगी क्योंकि एनेर्जी ट्रांसिशन में एक बड़ा मानवीय पहलू शामिल है।” उन्होंने यह भी कहा कि एक नई अर्थव्यवस्था के निर्माण के लिए भूमि प्रमुख मुद्दा होगा, और भारत जैसे देशों के लिए, खनन भूमि का पुनर्निमाण एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान कर सकता है, ”उन्होंने कहा।
रिलीज़ के अवसर पर श्री अमिताभ कांत ने कहा, “जस्ट ट्रांजिशन एक अवधारणा के रूप में उभरा है जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोयला और पॉवर क्षेत्रों में स्थानीय समुदायों को खदान और थर्मल पावर के असामयिक बंद होने के नतीजों का सामना न करना पड़े। भारत के लिए, जस्ट ट्रांजिशन का एक प्रमुख पहलू विकास पर जोर होगा। हमें छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा जैसे राज्यों में भी ह्यूमन कैपिटल में निवेश करने की जरूरत है। इन राज्यों के पास नई अर्थव्यवस्था के निर्माण का अवसर है और इसके लिए सभी का साथ आना आवश्यक होगा।
भारत के सबसे बड़े कोयला और थर्मल पावर जिलों को दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। पहला, तेजी से बढ़ते और लागत-प्रतिस्पर्धी अक्षय ऊर्जा क्षेत्र द्वारा एनेर्जी ट्रांजिशन है। दूसरा, घटते कोयले के भंडार, लाभहीन कोयला खदानें और पुराने हो रहे थर्मल पावर प्लांट है। इससे कोयला क्षेत्रों के लिए वर्तमान और आने वाले दशकों में एक बड़ा आर्थिक व्यवधान पैदा होगा। इस परिस्थिति को देखते हुए जस्ट ट्रांजिशन की शुरूआत तत्काल होनी चाहिए है। कोरबा जैसे जिलों को भविष्य के लिए प्लानिंग शुरू करने देने की आवश्यकता है जिससे होने वाले सामाजिक-आर्थिक प्रभावों को रोका जा सके,” iFOREST के अध्यक्ष और सीईओ चंद्र भूषण ने कहा।
आगे, श्रेष्ठा बनर्जी, निदेशक, जस्ट ट्रांजिशन, आईफॉरेस्ट, कहती हैं, “जस्ट ट्रांजिशन केवल जलवायु परिवर्तन की कार्रवाई नहीं है; यह कोयला जिलों में संसाधन अभिशाप को मिटाने का एक अवसर है। अगले 10 से 20 साल कोरबा के लिए जस्ट ट्रांजिशन की योजना बनाने और उसे लागू करने के लिए महत्वपूर्ण होंगे। हमें सही नीतियों और शासन तंत्र की आवश्यकता है जिससे एक नई समावेशी अर्थव्यवस्था निर्माण के इस अवसर को साकार किया जा सके।”