डॉ सीमा जावेद
फ़रवरी का महीना शुरू होते ही मौसम ने अपने तेवर बदलने शुरू कर दिये। हालाँकि कड़कती ठंड से अचानक मिली राहत से लोग खुश हैं मगर इस तरह अचानक मौसम का बदला मिज़ाज, पिछले साल (2022) में पड़ी जानलेवा गर्मी की याद दिला रहा है। जब जलवायु परिवर्तन की ऐसी मार दिखी के मार्च में पारा 40 के पार पहुँच गया था। इस साल भी जिस अन्दाज़ से मौसम बदल रहा है उससे उत्तर-पश्चिम के मैदानों में हीटवेव के हालात के लिये जमीन तैयार हो रही है।
गौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन के चलते उपजी ग्लोबल वार्मिंग से पिछले कुछ सालों में हम गर्मी के तापमान में धीरे-धीरे वृद्धि होते देख रहे हैं। अधिकतम तापमान रिकॉर्ड तोड़ रहा है और अब यह वैश्विक माध्य तापमान में वृद्धि के साथ खड़ा है।
वैश्विक तापमान बढ़ चुका है और अगर आने वाले समय में इसे रोका नहीं गया तो इसमें और भी वृद्धि होने की सम्भावना है। दुनिया भर के वैज्ञानिक बार-बार इसे दोहरा भी रहे हैं। हाल ही में जलवायु के प्रभावों, जोखिम शीलता और अनुकूलन( एडेप्टेशन) के बारे में आईपीसीसी की डब्ल्यूजी 2 रिपोर्ट के मुताबिक अगर प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में तेजी से कमी नहीं लायी गयी तो गर्मी और उमस ऐसे हालात पैदा करेंगी जिन्हें सहन करना इंसान के वश की बात नहीं रहेगी। भारत उन देशों में शामिल है जहां ऐसी असहनीय स्थितियां महसूस की जाएंगी।
एक अध्ययन के अनुसार अगर ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन इसी तरह जारी रहा तो गर्मी इतनी हद से पार हो जायेगी कि इन्सान का इस धरती पर जीना दूभर हो जायेगा। इस तपती गर्मी बढ़ने के मामले में भारत सबसे अव्वल है। अध्ययन के अनुसार ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन अगर कम नहीं किया गया तो दुनिया की लगभग एक तिहाई आबादी को आशियाना देने वाला भूभाग सहारा क्षेत्र के सबसे गर्म हिस्सों जितना गर्म हो जाएगा।
2022 में मार्च के आगमन पर ही मध्य भारत, खासतौर से राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र तथा मध्य प्रदेश और तेलंगाना से सटे क्षेत्रों में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से काफी ऊपर पहुंच गया था और पूरा भारत भयंकर तपिश से गुजरा । साल 2022 में हीट वेव के मामले में करीब सवा सौ साल का रिकॉर्ड टूट गया। यूरोप ने पहली बार अनुभव किया कि थर्ड वर्ल्ड कहे जाने वाले कई देश आखिर गर्मी की कैसी मार झेलते हैं।
ग़ौरतलब है कि 1990 से 2018 तक, दुनियाके हर क्षेत्र में आबादी हर साल तपती गर्मी की चपेट में है। भारत में रिकॉर्ड तोड़ गर्म मौसम एक बड़ा स्वास्थ्य खतरा है। चढ़ता पारा हर साल गर्मी में प्रचंड कहर बरपा करता है और पूरे उत्तर भारत को झुलसा देता है।
उत्तर-पश्चिम के मैदानों में भी पारा चढ़ रहा है, जिससे ग्रीष्मलहर के हालात के लिये जमीन तैयार हो रही है। जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखण्ड जैसे पहाड़ी राज्यों में भी गर्मी महसूस की जा रही है। आईपीसीसी की डब्ल्यूजी 2 रिपोर्ट के मुताबिक खनऊ और पटना ऐसे शहरों में शुमार हैं जहां अगर उत्सर्जन की मौजूदा दर जारी रही तो वेट-बल्ब तापमान 35 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाने का अनुमान है।
वहीं, अगर उत्सर्जन का यही हाल रहा तो भुवनेश्वर, चेन्नई, मुम्बई, इंदौर और अहमदाबाद में वेट-बल्ब तापमान 32-34 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाएगा। कुल मिलाकर, असम, मेघालय, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब सबसे गंभीर रूप से प्रभावित होंगे, लेकिन अगर उत्सर्जन में वृद्धि जारी रही तो सभी भारतीय राज्यों में ऐसे क्षेत्र होंगे जो 30 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक वेट-बल्ब तापमान का अनुभव करेंगे।
आईपीसीसी की रिपोर्ट में इस बात पर खासा विश्वास जाहिर किया गया है कि चरम स्तर पर गर्म जलवायु की वजह से पिछले कुछ दशकों के दौरान आर्थिक और सामाजिक रूप से हाशिये पर खड़े नागरिकों पर सबसे ज्यादा असर पड़ा है।
उस पर से ग़ज़ब यह है की कंक्रीट और निर्माण सामग्री में हवा के बंध जाने की वजह से मौसम गर्म बना रहता है। द अरबन हीट आइलैंड (यूएचआई) नगरीय क्षेत्रों को गर्म करने में अहम भूमिका निभा रहा है। ग्रीन कवर को नुकसान और शहरों में सड़क चलते ज़्यादातर लोगों के लिये छाँव नहीं होने भी सोने पर सुहागा का असर दिखाता है।
जोखिम वाले इलाकों में ग्लोबल वार्मिंग खाद्य उत्पादन पर दबाव लगातार बढ़ाती जा रही है क्योंकि डेढ़ से दो डिग्री सेल्सियस ग्लोबल वार्मिंग के बीच और हीटवेव स्थितियों के तहत सूखा पड़ने की आवृत्ति, सघनता और तीव्रता बढ़ रही है। ऐसी उम्मीद है कि ये चरम मौसमी स्थितियां न सिर्फ निकट भविष्य में बल्कि दीर्घकाल में भी खराब स्वास्थ्य और अकाल मृत्यु की घटनाओं का सबब बन सकती हैं ।
ऐसे में वक़्त रहते लोगों का इस बारे में जागरूक हो जाना और इस से मुक़ाबले के लिए मानसिक रूप से तैयार होना बेहद ज़रूरी है । इसमें अपनी दिनचर्या में पारा ऊपर चढ़ने के बाद कुछ बदलाव जैसे तपती दोपहर में घर में रहना और सभ शाम बाहर निकालना विशेषकर फेरी लगाने वालों, रिक्शा , ऑटो चलाने वाले मेहनतकश लोगों के लिए बहुत राहत दे सकता है। इसी तरह अपने घर की छतों को ठंडा रखने का इंतिज़ाम के छोटे मोटे उपाय अभी से शुरू कार्डने चाहिए ताकि उनको समय रहते अपनाया जा सके।
विशेषज्ञों के अनुसार ठंडी छत घरों में रहने वालों के लिए गर्मी से राहत और वातानुकूलित भवनों में ऊर्जा की बचत करती है। जब बड़े पैमाने पर लागू हों, तो ठंडी छतें शहरी गर्मी के प्रभाव का मुकाबला कर सकती हैं, जो भवन निर्माण में इस्तेमाल किये जाने वाले सामग्री के कारण वातावरण मौजूद गर्मी को अवशोषित नहीं करती हैं। साथ ही उपर से आने वाली सौर विकिरण को प्रतिबिंबित करके, ठंडी छतें इमारतों के अंदरुनी तापमान को कम कर सकते हैं और पूरे शहर को ठंडा करने की बिजली की मांग को कम कर सकते हैं।
एक ठंडी छत एक ऐसी छत है, जो ऐसी सामग्रियों से निर्मित होती है जो कम गर्मी बनाए रखती हैं और अधिक धूप को प्रतिबिंबित करके पारंपरिक छतों की तुलना में अधिक ठंडी रहती हैं। इन छतों को विशेष विशेषताओं (हाई रिफ्लेक्शन और हाई एमिशन) वाली सामग्रियों का कवर इन पर लेपित किया जाता है। नतीजतन, छत पूरे दिन ठंडा रहती है।