पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी दुष्परिणामों के मद्देनजर भारत में रिन्यूबल एनेर्जी से जुड़े महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किये गये हैं। इसके तहत कार्बन एमिशन को खत्म करने के लिये कोयला खदानों को दीर्घकाल में बंद करना होगा। ऐसे में यह सवाल भी उठ रहे हैं कि इन खदानों में काम करने वाली बड़ी श्रम शक्ति के हितों के लिहाज से न्यायसंगत ट्रांज़िशन का स्वरूप कैसा होगा और बंद होने वाली खदानों को रिन्यूबल एनेर्जी में ट्रांज़िशन के लिये किस तरह बेहतर तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है।
इस महत्वपूर्ण विषय से जुड़ी विभिन्न चुनौतियों और अवसरों पर चर्चा के लिये जलवायु थिंक टैंक ‘क्लाइमेट ट्रेंड्स’ और ‘स्वनीति’ ने एक वेबिनार आयोजित किया। इसमें ‘कोल इंडिया’ की सौर शाखा के अधिशासी निदेशक श्री सौमित्र सिंह और अमेरिकी प्रान्त वेस्ट वर्जीनिया में कोलफील्ड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन में सीनियर डायरेक्टर (कंजर्वेशन) कैसिडी रिले ने इस पूरे मामले के विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार रखे।
विशेषज्ञों का मानना है कि रिन्यूबल एनेर्जी में ट्रांज़िशन को न्यायसंगत बनाना जरूरी है और भविष्य में खदानों के बंद होने से प्रभावित होने वाले समुदायों को रोजगार के वैकल्पिक स्रोत उपलब्ध कराने के लिये उन्हें प्रशिक्षित किया जाना चाहिये।
सौमित्र सिंह ने न्यायसंगत ट्रांज़िशन और रिन्यूबल एनेर्जी के समेकित परिप्रेक्ष्य को समझने के लिये कोल इंडिया की तरफ से नीतिगत स्तर पर बदलाव की वकालत करते हुए कहा कि कोल इंडिया द्वारा की गई पहल और भविष्य में कोयला खदानों को न्यायसंगत ट्रांज़िशन के मकसद से इस्तेमाल करने के लिए सोच में आमूल-चूल बदलाव करने की जरूरत है। कोल इंडिया स्तर पर पॉलिसी लेवल इंटरवेंशन सबसे ज्यादा जरूरी है ताकि न्यायसंगत ट्रांज़िशन और रिन्यूबल एनेर्जी को समझा जा सके। दूसरा, सरकार की तरफ से नीतिगत स्तर पर बदलाव करने होंगे।
इसके लिए हमें बहुपक्षीय एजेंसियों की मदद लेनी होगी। साथ ही साथ केंद्र सरकार की भी सहायता जरूरी होगी। यह नीति से जुड़े मूलभूत मसले हैं जिन्हें बदलने की जरूरत है।
उन्होंने ऊर्जा संयंत्रों के लिये पर्यावरणीय मंजूरियों की प्रक्रिया में जन भागीदारी पर जोर देते हुए कहा, ‘‘वर्ष 1997 में विश्व बैंक के हस्तक्षेप से पर्यावरणीय मंजूरियों की प्रक्रिया में पब्लिक शेयरिंग प्रक्रिया शुरू की गई थी। अगर यह वर्ष 1997 में किया जा सकता था तो भारत सरकार जस्ट ट्रांजीशन को भी अपने पॉलिसी प्रोग्राम के हिस्से के तौर पर लागू कर सकती है। जहां तक कोल इंडिया का सवाल है तो और भी ज्यादा बड़ी नीतिगत पहल की जरूरत है।’’
सिंह ने कोयला खदानों की रिन्यूबल एनेर्जी और अन्य क्षेत्रों में इस्तेमाल की परिकल्पना का जिक्र करते हुए कहा कि वर्ष 2009 में पहली बार ऐसा सोचा गया था। वर्ष 2009 में जब केंद्र सरकार इस परिकल्पना को लेकर आई थी तो उस वक्त यही सोचा गया था कि कोयला खदानों को बंद किए जाने के बाद उनका इस्तेमाल सिर्फ वनीकरण करने और कुछ हद तक उन्हें जल स्रोतों के रूप में किया जाएगा। साथ ही अचल संपत्ति के रूप में बनाई गई जायदाद जैसे कि इमारतें इत्यादि संबंधित समिति या स्थानीय शासन निकाय को कंपनी द्वारा वापस किया जाएगा। यह सिलसिला कमोबेश आज भी जारी है। हालांकि बाद में मौजूदा केंद्र सरकार के दूसरे कार्यकाल में खदान बंद करने की गतिविधि को रिन्यूबल एनेर्जी के लिये इस्तेमाल करने की सोच स्थापित हुई है।’’
सिंह ने भारत के वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य के मद्देनजर सामने खड़ी चुनौतियों का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘हम सभी जानते हैं कि भारत दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है। भारत को वर्ष 2047 तक विकसित देश के रूप में स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है। इसका मतलब यह है कि प्रतिवर्ष सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 8.50 प्रतिशत की दर से बढ़नी चाहिए। वर्तमान में हमारी कुल ऊर्जा आवश्यकता की पूर्ति में कोयले का योगदान 48% है। अंदाजा लगाइए कि वर्ष 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए क्या करना होगा।’’
उन्होंने कहा कि इस लिहाज से देखें तो केंद्र सरकार अनेक योजनाओं के साथ आगे आई है। इसमें संपत्तियों को रिन्यूबल एनेर्जी में स्थापित करने का मंसूबा भी शामिल है। हम न सिर्फ अपनी खदानों को कोयला उत्पादन के परिप्रेक्ष्य में देख रहे हैं बल्कि अब हम यह भी देख रहे हैं कि कैसे अपने सतत विकास लक्ष्यों और रिन्यूबल एनेर्जी कार्यक्रमों में खदानों का इस्तेमाल किया जाए ताकि सतत विकास लक्ष्यों को भी हासिल किया जा सके।
सिंह ने खदानें बंद होने की स्थिति में उससे प्रभावित होने वाली आबादी को रोजगार के विकल्प उपलब्ध कराने की जरूरतों पर कहा, ‘‘एक यह भी सोच है कि स्थानीय समुदायों का समावेशी विकास किया जाए। भारत यह भी सोच रहा है बंद की गई खदानों की जमीन पर स्थानीय समुदायों को कार्यकुशल बनाने के लिये कार्यक्रम चलाये जाएं। उन्हें वैकल्पिक ऊर्जा के कारोबार में शामिल किया जाए ताकि जब कोयला खदान वर्ष 2030-2035 तक बंद हो जाएं तो वे स्थानीय लोग अपनी सतत आजीविका को इन कार्यक्रमों के माध्यम से हासिल करने के लायक बन सकें।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मेरा यह भी मानना है कि हमें न्यायसंगत ट्रांज़िशन को दो नजरियों से देखना चाहिए। पहला, एक ऐसा जेनेरिक प्रोग्राम बनाना चाहिए जो सभी परियोजनाओं के लिए समान हो। दूसरा, विभिन्न राज्यों की विविधताओं को देखते हुए एक ऐसा कार्यक्रम भी बनाया जाना चाहिए जो परियोजना विशेष के आधार पर लागू किया जा सके। इसके जरिए न्यायसंगत ट्रांज़िशन को अमली जामा पहनाया जा सकता है।’’
सिंह ने इन महत्वाकांक्षी कार्यक्रमों के लिये वित्तपोषण का मुद्दा उठाते हुए कहा कि एक बड़ा सवाल यह है कि इन कार्यक्रमों के लिए वित्तपोषण कौन करेगा। इसके लिए हमें योजना बनानी होगी ताकि हम केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के साथ मिलकर वित्त पोषण का इंतजाम कर सकें।
कोलफील्ड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन में सीनियर डायरेक्टर ऑफ कन्वर्सेशन कैसिडी रीले ने रिन्यूबल एनेर्जी के लिये खदानें बंद करने से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर रोशनी डालते हुए न्यायसंगत ट्रांज़िशन के लिये प्रभावित होने वाली आबादी को वैकल्पिक रोजगार से जुड़े प्रशिक्षण देने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने वेस्ट वर्जीनिया में बंद हो चुकी कोयला खदानों वाले इलाकों मे श्रमिकों की तरक्की से संबंधित एक प्रस्तुति दी।
उन्होंने कहा कि जो वेस्ट वर्जिनिया पेयजल की गुणवत्ता और शिशु मृत्यु दर के मामले में पांच सबसे निचले राज्यों में शामिल था, वहां श्रम शक्ति के पुनरुद्धार को लेकर कोलफील्ड मॉडल के तहत किए गए कार्यों का व्यापक असर पड़ा है। इसके परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में रोजगार के 800 नए अवसर पैदा हुए हैं। साथ ही 160 मिलियन डॉलर से ज्यादा का नया निवेश प्राप्त हुआ है। इसके अलावा दो लाख 60 हजार वर्ग फुट बेकार पड़ी संपत्ति को पुनरविकसित किया गया है और तीन हजार से ज्यादा लोगों को नए और सतत क्षेत्र में प्रशिक्षित किया गया है। 12 विभिन्न समुदायों ने इस मॉडल को अपनाना शुरू भी कर दिया है।
कैसिडी ने बताया कि उनकी संस्था का मिशन रोजगार हासिल करने के रास्ते की तमाम रूकावटों का सामना कर रहे लोगों को व्यक्तिगत पेशेवर और एकेडमिक रूप से विकसित करना, समुदाय आधारित रियल स्टेट डेवलपमेंट को आगे बढ़ाना और उभरते हुए सतत क्षेत्र के नए प्रोग्राम्स डिजाइन करना और उन्हें बड़े पैमाने पर लागू करना है।
कैसिडी ने बताया कि कोलफील्ड मॉडल से श्रम शक्ति को कार्य कुशल बनने में इसलिए मदद मिली क्योंकि इसके लिए व्यक्तिगत स्तर पर एक ऐसी बारीक नीति अपनाई गई जो रोजगार हासिल करने में उत्पन्न रूकावटों से निपट सकती है। इसके अलावा गैर वित्तीय लाभकारी सामुदायिक क्षमता विकास के प्रयास इसलिए सफल हुए क्योंकि यह श्रम शक्ति के विकास के प्रैक्टिशनर्स को सक्षम बनाते हैं।
भारत और अमेरिका के बीच संबंध पिछले दो दशकों में एक महत्वपूर्ण साझेदारी के रूप में उभरे हैं, जिसमें दोनों देश कई स्तरों पर सहयोग कर रहे हैं। उनमें से ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन सहयोग सबसे महत्वपूर्ण है।
जैसे-जैसे न्यायसंगत ऊर्जा परिवर्तन के बारे में चर्चाएँ रफ्तार पकड़ती हैं, यह दोनों रणनीतिक साझेदारों को सहयोग को मजबूत करने और एक-दूसरे से सीखने का अवसर देती हैं। अमेरिका जैसी विकसित अर्थव्यवस्था, जिसका ऊर्जा क्षेत्र मजबूत है के लिये स्वच्छ ऊर्जा रूपांतरण चर्चा का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र रहा है। इसी तरह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के साथ-साथ ऊर्जा सुरक्षा हासिल करने की कोशिश कर रही भारत जैसी महत्वपूर्ण विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए रिन्यूबल एनेर्जी को तेजी से अपनाने सहित न्यायसंगत ऊर्जा रूपांतरण ने अपनी अहम जगह बना ली है। अमेरिका में कोयला खदानों/थर्मल संपत्तियों के पुनर्वास और रिन्यूबल एनेर्जी परियोजनाओं के लिए उनके उपयोग के बारे में चर्चाओं का सिलसिला लगातार बढ़ रहा है। लगभग 300 समाप्त/परित्यक्त/बंद कोयला खदानों के साथ भारत भी इसी राह पर है। ऐसी बंद संपत्तियों से निपटने के लिए एक संयुक्त व्यापार ढांचे का विकास महत्वपूर्ण हो गया है।