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Category: जलवायु परिवर्तन

COP26: बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के लिए कमज़ोर देशों के समर्थन में अपने पत्ते खेलने की ज़रूरत

Posted on November 12, 2021

एक बेहद तेज़ घटनाक्रम में यूके की COP प्रेसीडेंसी ने ग्लासगो क्लाइमेट समिट के लिए फैसलों का एक नया मसौदा जारी किया है। इस मसौदे की भाषा सशक्त है और इशारा करती है कि अंततः फैसलों की शक्ल कैसी हो सकती है।लेकिन इस मसौदे को ले कर विशेषज्ञों की कुछ चिंताएं हैं। इनमें चिंता का मुख्य विषय…

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इधर ला नीना बर्पायेगा सर्द कहर, उधर पराली घोलेगी हवा में ज़हर

Posted on November 9, 2021

जहाँ एक और ला नीना के लगातार दूसरे साल प्रकट होने से मौसम विज्ञानी एक तीव्र सर्दी अपेक्षित कर रहे हैं, वहीँ उत्तर भारत में आने वाले महीनों में गंभीर वायु प्रदूषण भी अपेक्षित है। अक्टूबर में भले ही पराली जलाने की घटनाओं की कम संख्या और व्यापक बारिश और हिमपात ने प्रदूषण को नियंत्रण में रखा, लेकिन स्थिति अब बदलती दिख रही है।तापमान में गिरावट और अन्य मौसम संबंधी वजहों, जैसे हवा की गति धीमी होना और उसकी दिशा, के चलते प्रदूषण का स्तर फिर से भारत-गंगा के मैदानी इलाकों (IGP) के अधिकांश शहरों में ‘बहुत खराब’ और ‘खतरनाक’ श्रेणियों में है। पटाखों और पराली जलाने के मौसमी कारकों ने, हमेशा की तरह, समस्या को और बढ़ा दिया है, क्योंकि फसल अवशेष जलाने की घटनाओं का उच्चतम स्तर दिवाली के साथ मेल खाता है।ला नीना और वायु प्रदूषण के बीच का संबंधलगातार दूसरी बार ला नीना के साथ, उत्तर पश्चिम भारत इस मौसम में भीषण सर्द मौसम के लिए तैयार है। मौसम विज्ञानी इस साल IGP  भर में रिकॉर्ड लो (कम) तापमान की भविष्यवाणी कर रहे हैं, नवंबर और दिसंबर में सामान्य से अधिक ठंड पड़ने की उम्मीद है। ब्लूमबर्ग की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी और फरवरी में कुछ उत्तरी क्षेत्रों में, ठीक होने से पहले, भारत में तापमान 3 डिग्री सेल्सियस (37 फ़ारेनहाइट) तक गिरने की उम्मीद है।“एक के बाद एक दूसरे ला नीना की एक बड़ी संभावना है, जिसके परिणामस्वरूप दिसंबर 2021-फरवरी 2022 तक अत्यधिक ठंड पड़ सकती है। इस अवधि के दौरान समुद्री घटनाओं के चरम पर होने की उम्मीद है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि सर्दियों की तीव्रता दुनिया के अन्य हिस्सों में घटते कई अन्य कारकों से भी प्रभावित होती है,” जी.पी. शर्मा, अध्यक्ष-मौसम विज्ञान और जलवायु परिवर्तन, स्काईमेट वेदर, ने कहा।यह स्पष्ट रूप से स्थापित किया गया है कि सर्दी का मौसम प्रदूषण में वृद्धि के लिए अनुकूल समय है। सर्दियों के दिनों में, ठंडी हवा अक्सर उत्तरी भारत में बस जाती है। शीतकाल के तापमान उलटने से धुंध के निर्माण में योगदान होता हैं। तापमान का यह उलटना तब होता है जब ठंडी हवा गर्म हवा की एक परत के नीचे फंस जाती है। चूंकि ठंडी हवा गर्म हवा से ऊपर नहीं उठ सकती, इसलिए ठंडी हवा में प्रदूषण तब तक बना रहता है जब तक तापमान उलटा रहता है। सर्दियों के महीनों में देखी जाने वाली धुंध ज्यादातर तापमान में उलटफेर (व्युत्क्रमण) का भी परिणाम है। आमतौर पर, वायुमंडल में उच्च हवा पृथ्वी की सतह के पास हवा की तुलना में ठंडी होती है। सतह के पास गर्म हवा ऊपर उठती है, जिससे सतह से प्रदूषक वातावरण में फैल जाते हैं।उत्तर पश्चिमी मैदानी इलाकों में प्रदूषण के और तीव्र दौरमौसम में अधिक ठंडे दिनों की संभावना पूरे IGP, विशेष रूप से दिल्ली NCR के लिए निश्चित रूप से अधिक संख्या में ‘खराब’ से ‘गंभीर’ वायु गुणवत्ता वाले दिनों की ओर ले जाएगी। विशेषज्ञ बताते हैं कि सर्दी का मौसम पहले से ही प्रदूषण के लिए अनुकूल है और पारा में और गिरावट से स्थिति और खराब होगी।“तापमान में गिरावट के साथ, अधिक स्थिर स्थितियों की संभावना है। हालांकि, यह ये मानते हुए है कि हवाएं नहीं बदलती हैं। यदि किसी कारण से हवाएं धीमी हो जाती हैं और इस अवधि के दौरान पराली या बायोमास जलने में वृद्धि होती है, तो नई दिल्ली सहित उत्तरी मैदानी इलाकों में समग्र वायु गुणवत्ता की स्थिति खराब हो सकती है।संक्षेप में, शेष सभी स्थिर रहते हुए, और ठंड की स्थिति वातावरण के भीतर लंबवत मिश्रण को रोकती है।इसलिए, खराब वायु गुणवत्ता के लिए संभावनाएं अधिक हैं,” डॉ वी. विनोज, सहायक प्रोफेसर, स्कूल ऑफ अर्त ओशन एंडक्लाइमेट साइंसेज़, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी भुवनेश्वर ने कहा।

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‘बेहद जोखिम भरे’ हैं अब निवेशकों के लिये कार्बन-सघन इन्फ्रास्ट्रक्चर

Posted on November 8, 2021

वैश्विक अर्थव्‍यवस्‍था ऊर्जा और परिवहन क्षेत्र में निम्‍न कार्बन के टिपिंग प्‍वाइंट्स को छू रही है। आने वाले दशक में सभी क्षेत्र जीवाश्‍म ईंधन से तेजी से छुटकारा पाने को तैयार हैं। वैश्विक सततता कंसल्‍टेंसी ‘सिस्‍टेमिक’ के एक ताजा अध्‍ययन ‘द पेरिस इफेक्‍ट- सीओपी26 संस्‍करण’ (The Paris Effect – COP26 edition), के मुताबिक भारी कार्बन उत्‍सर्जन वाले किसी नये मूलभूत…

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जलवायु परिवर्तन अनुकूल प्रयासों को करना होगा तेज़, वरना करना पड़ेगा व्यवधानों का सामना : संयुक्त राष्ट्र

Posted on November 5, 2021
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जलवायु परिवर्तन जनस्वास्थ्य का भी मुद्दा है

Posted on November 3, 2021

जब दुनिया भर के देशों के शीर्ष नेता और नीति निर्माता स्कॉटलैंड के ग्लासगो शहर में जलवायु परिवर्तन पर नीति निर्धारण के लिए चल रही COP 26 में चर्चा और फैसलों में व्यस्त हैं, तब भारत के सबसे प्रदेश की राजधानी लखनऊ में, एशिया के सबसे बड़े चिकित्सालय, किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, में भी जलवायु परिवर्तन…

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उत्सर्जन में तात्कालिक कटौती के लिए कदम न उठाना पड़ेगा G20 को भारी

Posted on October 29, 2021

एक अध्ययन से पता चलता है कि कार्बन उत्सर्जन में तात्कालिक तौर से कटौती न करने की वजह से G20 देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना करना पड़ रहा है, और करना पड़ेगा। इस नए अध्ययन में , G20 क्लाइमेट इम्पैक्ट्स एटलस वैज्ञानिक अनुमानों को एकत्रित करता है कि आने वाले वर्षों में दुनिया के सबसे अमीर…

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अमीर देश जलवायु परिवर्तन से निपटने को कम, सीमाओं के शस्रीकरण को दे रहे हैं ज्यादा तरजीह

Posted on October 29, 2021

एक ताज़ा शोध में पाया गया है कि दुनिया के कुछ सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जक देश जलवायु परिवर्तन से निपटने में उतना नहीं खर्च करते जितना अपनी सीमाओं के सशक्तिकरण पर खर्च करते हैं।    COP 26 से पहले, अनुसंधान और एडवोकेसी थिंकटैंक ट्रांसनेशनल इंस्टीट्यूट (TNI) ने बॉर्डर हिंसा और जलवायु परिवर्तन के बीच की कड़ी पर नया शोध…

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बेरोकटोक एमिशन्स और निराशाजनक ग्रीन रिकवरी के चलते दुनिया के लिए आने वाला वक़्त आज़माइशों से भरा: लैंसेट काउंटडाउन

Posted on October 21, 2021
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जलवायु परिवर्तन मानवजनित ही है: 99.9 % अध्ययन

Posted on October 20, 2021

लगभग शत-प्रतिशत शोध यह कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन किसी प्राक्रतिक नियति का हिस्सा नहीं, बल्कि हमारी आपकी गतिविधियों का ही नतीजा है।इस बात को सामने लायी है एक रिपोर्ट जिसने 88,125 जलवायु-संबंधी अध्ययनों के एक सर्वेक्षण में पाया कि 99.9% से अधिक अध्ययन यह मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन मानव जनित ही है।ध्यान रहे…

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मुंबई समेत दुनिया के यह 50 देश हो जायेंगे ग़ायब, अगर…

Posted on October 15, 2021

क्लाइमेट सेंट्रल नाम के एक गैर-लाभकारी समाचार संगठन ने कुछ हैरान करने वाली फ़ोटोज़ का एक सेट जारी किया है जो दिखाता है कि अगर जलवायु परिवर्तन संकट से निपटा नहीं गया तो दुनिया भर के कुछ सबसे प्रतिष्ठित स्थलों का क्या होगा। क्लाइमेट सेंट्रल के नवीनतम शोध से पता चलता है कि वर्तमान उत्सर्जन मार्ग के…

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