जलवायु संबंधी चिंताओं को दूर करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम में, संयुक्त अरब अमीरात और अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (ISO) ने हाइड्रोजन उत्पादन से ग्रीनहाउस गैस एमिशन को मापने के लिए COP28 में एक पद्धति की शुरुआत की है। लेकिन इसके साथ एक विवाद को भी जन्म मिल गया है। दरअसल कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि यह पद्धति अनजाने में, फ़ोस्सिल फ्यूल से प्राप्त हाइड्रोजन को, क्लीन हाइड्रोजन की तरह स्वीकार्य होने का भ्रम बना सकती है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह इस हाइड्रोजन की काली हक़ीक़त पर पर्यावरणीय स्वीकार्यता का ग्रीन पर्दा डालने का काम कर सकती है। इसी पर्दे तो ग्रीनवॉश कहा जाता है।
ISO की प्रस्तुत पद्धति का उद्देश्य फिलहाल हाइड्रोजन के उत्पादन, कंडीशनिंग और उपभोगता के गेट तक पहुँचने सहित पूरे जीवनचक्र से जुड़े ग्रीनहाउस गैस एमिशन को निर्धारित करना है। इसकी हालांकि हाइड्रोजन उत्पादन के पर्यावरणीय प्रभावों को पहचानने में एक सकारात्मक कदम के रूप में सराहना की गई, लेकिन आलोचकों का तर्क है कि इसमें सीधे तौर पर एमिशन सीमा के उल्लेख का अभाव है, जिससे नीति निर्माताओं के लिए असल क्लीन हाइड्रोजन और प्रदूषणकारी स्त्रोतों से बनी किस्मों के बीच अंतर करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
COP28 पहल के हिस्से के रूप में, ISO ने 1.5-डिग्री सेल्सियस लक्ष्य को प्राप्त करने के वैश्विक प्रयासों के साथ जोड़ते करते हुए, हाइड्रोजन के व्यावसायीकरण में तेजी लाने के लिए डिज़ाइन किए गए इन नए क्लीन हाइड्रोजन मानकों को पेश किया। इन मानकों में हाइड्रोजन और हाइड्रोजन डेरिवेटिव के लिए प्रमाणन योजनाओं की पारस्परिक मान्यता पर इरादे की एक अंतर-सरकारी घोषणा शामिल है, जो हाइड्रोजन और इसके डेरिवेटिव में प्रत्याशित भविष्य के वैश्विक बाजार के 80% से अधिक को कवर करती है।
ISO की कार्यप्रणाली लाइफ साइकल विश्लेषण के आधार पर पूरे हाइड्रोजन लाइफ साइकल में ग्रीनहाउस गैस एमिशन का आकलन करने के लिए एक वैश्विक बेंचमार्क भी स्थापित करती है। इसके अतिरिक्त, अंतर्राष्ट्रीय हाइड्रोजन व्यापार मंच (आईएचटीएफ) और हाइड्रोजन परिषद के सहयोग से हाइड्रोजन और डेरिवेटिव में सीमा पार व्यापार संभावनाओं पर एक सार्वजनिक-निजी कार्रवाई वक्तव्य की भी घोषणा की गई।
COP28 मंत्रिस्तरीय चर्चाओं में ऊर्जा वेक्टर के रूप में हाइड्रोजन की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया गया, जो 2050 तक 60 से 80 गीगाटन CO2 को कम करने में सक्षम है और वैश्विक डीकार्बोनाइजेशन प्रयास में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।
इन सकारात्मक विकासों के बावजूद, वैज्ञानिकों और जलवायु कार्यकर्ताओं द्वारा चिंता जताई गई है कि आईएसओ का हाइड्रोजन मानक ‘स्वच्छ’ हाइड्रोजन के बारे में स्पष्टता के बजाय भ्रम पैदा कर सकता है। कार्यप्रणाली में एक साफ़ तौर पर परिभाषित एमिशन सीमा की कमी के चलते संभावित रूप से पर्यावरणीय रूप से हानिकारक हाइड्रोजन की ग्रीनवाशिंग की इस संभावना के लिए आलोचना की जाती है।
बेलोना यूरोपा में रिन्यूबल एनेर्जी प्रणालियों के वरिष्ठ नीति सलाहकार मार्टा लोविसोलो ने आपत्ति व्यक्त करते हुए कहा, “यह अलग-अलग देशों पर यह तय करने की जिम्मेदारी डालता है कि ‘स्वच्छ’ हाइड्रोजन क्या है। इससे हाइड्रोजन व्यापार का एक जटिल और खंडित भविष्य का मार्ग प्रशस्त होता है।”
बेलोना डॉयचलैंड में सस्टेनेबल हाइड्रोजन इकोनॉमी के नीति सलाहकार लुइसा केसलर ने कहा, ” ऐसा नहीं है कि आज लॉन्च किए गए आईएसओ मानक का अनुपालन करने वाली हाइड्रोजन ‘कम कार्बन’ वाली है। यह सही मायनों में जलवायु की असल जरूरतों के साथ जुड़े हाइड्रोजन मानक पेश करने का एक मौका चूकने जैसा है। इसमें एमिशन सीमा का उल्लेख न होना एक बड़ा रोड़ा है विश्व स्तर पर क्लीन हाइड्रोजन को बढ़ाने के रास्ते का।”
फिलहाल चर्चा जारी है। ज़रूरत है कि ‘ग्रीन’ हाइड्रोजन को परिभाषित किया जाए और स्थापित पर्यावरणीय मानदंडों के पालन पर आगे विचार-विमर्श किया जाए।