इस बात में तो कोई दो राय नहीं कि आने वाले वक़्त में जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता से निजात न सिर्फ हमारे लिए ज़रूरी होती जाएगी, बल्कि हमारी मजबूरी भी बन जाएगी। जीवाश्म ईंधन के विकल्प की बात करें तो भविष्य सौर ऊर्जा का है।
भारत के परिदृश्य में सौर ऊर्जा की बात करें तो भारत की भौगोलिक स्थिति देखते हुए यह एक बेहतरीन विकल्प है। लेकिन सौर ऊर्जा के साथ फ़िलहाल दो बुनियादी समस्या जुड़ी हुई हैं। पहली ये कि सौर ऊर्जा केवल दिन में उपलब्ध है और दूसरी समस्या यह कि इस ऊर्जा का स्टोरेज आसान नहीं।
लेकिन इस समस्या का निदान स्वीडन में काफ़ी हद तक मिलता दिख रहा है। दरअसल वहां के वैज्ञानिकों की एक टीम ने सोलर थर्मल फ्युएल या सौर तापीय ईंधन विकसित किया है, जो कि एक विशेष प्रकार का तरल ईंधन है जो सूर्य की ऊर्जा को 18 साल तक संग्रहीत करने में सक्षम है। इस ईंधन का आविष्कार स्वीडन के चाल्मर्स यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं द्वारा एक साल से अधिक समय के शोध के बाद किया है।
इस ईंधन को बनाने की तकनीक की बात करें तो पहले ये जान लीजिये कि इसमें सौर ऊर्जा को कैप्चर करने में मदद करने वाले उपकरण को MOST कहा जाता है। MOST मतलब मोलेक्युलर सोलर थर्मल एनर्जी स्टोरेज सिस्टम। यह एक गोलाकार तरीके से काम करता है जहां एक पम्प पारदर्शी ट्यूबों के माध्यम से ईंधन को इसमें घुमाता है।
जैसे ही ये ईंधन सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आता है, परमाणुओं के बीच का बंधन कुछ ऐसे अपने आपको बदलता है कि वो परमाणु ऊर्जा से भरपूर आइसोमर में बदल जाते हैं। सूरज से ऊर्जा को तब इन मजबूत रासायनिक बंधों में कैद कर लिया जाता है। जो बात हैरान करती है वो है की यह ऊर्जा इस तरल के रूम टेम्परेचर तक तरल ठंडा होने के बाद भी बनी रहती है।
इस ऊर्जा का उपयोग करने के लिए इस तरल को अनुसंधान टीम द्वारा विकसित एक केटेलिस्ट के माध्यम से प्रवाहित किया जाता है जो तरल को 63.8 डिग्री सेल्सियस तक गर्म करता है। अब होता ये है कि मॉलिक्यूल अपनी मूल स्थिति में बदलता है और ऊर्जा को हीट या ताप के रूप में निकालता है।
अब इस गर्मी का उपयोग या तो किसी भवन के वॉटर हीटर, डिशवॉशर और अन्य अनुप्रयोगों को गर्म करने के लिए किया जा सकता है जहां गर्म पानी की आवश्यकता होती है। इसका उपयोग औद्योगिक अनुप्रयोगों जैसे कि स्टरलाइज़ेष्न, डिस्टिलेशन, और खाना पकाने के लिए उपयोग किए जाने वाले कम तापमान वाले ताप के लिए भी किया जा सकता है।
मज़े की बात ये है कि इस तरल को वापस MOST में पम्प कर सकते हैं और वापस इसमें ऊर्जा स्टोर कर पुन: उपयोग किया जा सकता है। शोधकर्ताओं ने एक ही तरल पदार्थ का 125 बार से अधिक उपयोग किया है और इसकी आणविक संरचना को कोई महत्वपूर्ण नुकसान नहीं हुआ है।
शोध दल के नेता और रसायन विज्ञान और रसायन इंजीनियरिंग विभाग में प्रोफेसर, कैस्पर मॉथ-पुल्सेन कहते हैं कि यह तरल अपनी चरम क्षमता पर प्रति किलोग्राम 250 वाट ऊर्जा का भंडारण करने में सक्षम है। मतलब टेस्ला पावरवॉल बैटरी से दोगुनी क्षमता।
फ़िलहाल, शोधकर्ता इस तकनीक के बड़े पैमाने पर संचालन के लिए इसके प्रोटोटाइप विकसित करने पर काम कर रहे हैं। उन्हें यूरोपीय संघ से 4.3 मिलियन यूरो का अनुदान भी मिला है जो तीन साल तक चलने की उम्मीद है।
मोथ-पॉल्सेन ने एक बयान में कहा, “इस फंडिंग के साथ, अब हम MOST परियोजना में जो विकास कर सकते हैं, वह आवासीय और औद्योगिक अनुप्रयोगों में हीटिंग के लिए नए सौर-चालित और उत्सर्जन-मुक्त समाधान का आधार बन सकता है। यह परियोजना बहुत महत्वपूर्ण और रोमांचक चरण की ओर बढ़ रही है।”