जब दुनिया भर के देशों के शीर्ष नेता और नीति निर्माता स्कॉटलैंड के ग्लासगो शहर में जलवायु परिवर्तन पर नीति निर्धारण के लिए चल रही COP 26 में चर्चा और फैसलों में व्यस्त हैं, तब भारत के सबसे प्रदेश की राजधानी लखनऊ में, एशिया के सबसे बड़े चिकित्सालय, किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, में भी जलवायु परिवर्तन पर चर्चाओं का दौर चला।
इन चर्चाओं में संस्थान के रेस्पिरेट्री मेडिसिन विभाग के शिक्षक और छात्र विशेष रूप से लाभान्वित हुए क्योंकि जलवायु परिवर्तन के केंद्र में कम होती वायु गुणवत्ता भी है, जिसका सीधा प्रभाव हमारे फेफड़ों पर पड़ता है।
इस चर्चा को और प्रासंगिक बनाया इस बात ने कि किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय का रिस्परटेरी मेडिसिन विभाग अपना 75 वाँ स्थापना वर्ष (प्लैटिनम जुबली स्थापना वर्ष) मना रहा है। 75 वीं वर्षगॉठ में विभाग विभिन्न प्रकार के 75 आयोजन कर रहा है। इसी क्रम में विभाग ने जलवायु परिवर्तन पर विशेष चर्चा का आयोजन किया।
जलवायु परिवर्तन पर आधारित इस चर्चा की मुख्य वक्ता थीं अंतरराष्ट्रीय स्तर की वरिष्ठ जलवायु संचार रणनीतिकार और पर्यावरणविद डा सीमा जावेद। उन्होंने बताया कि, “जलवायु परिवर्तन एक ज्वलन्त मुददा बना हुआ है और आज सारी दुनिया इसकी बात कर रही है क्योंकि अभी नहीं तो कभी नहीं।“ आगे उन्होंने बताया कि शून्य कार्बन उत्सर्जन’ या नेट ज़ीरो आज की जरूरत है, जिससे हम आने वाली पीढ़ियों को एक अच्छा एवं स्वस्थ वातावरण दे सकेगें।

इस बीच प्रधानमंत्री मोदी ने भी ग्लासगो से विश्व को सन्देश दिया कि भारत 2070 तक नेट ज़ीरो हो जायेगा और इस बात पर इशारा भी किया कि अगले दस सालों में हमारे उत्सर्जन में गिरावट भी शुरू हो जाएगी।
डॉ सीमा ने इसी क्रम में चर्चा में उपस्थित डॉक्टरों को उनकी भूमिका याद दिलाई कि कैसे वो एक स्वास्थ्य पेशेवर के रूप में भी इस दिशा में सकारात्कमक काम कर सकते हैं। उन्होंने जलवायु परिवर्तन और जलवायु कार्रवाई और जन स्वास्थ्य पेशेवरों की भूमिका और प्रासंगिकता के बारे में व्यावहारिक बात की और कहा, “जलवायु परिवर्तन जनस्वास्थ्य का भी मुद्दा है।” उन्होंने आगे बताया कि लैंसेट कांउटडाउन की रिपोर्ट के अनुसार आने वाला वक्त आजमाइशों से भरा होगा। पिछले 30 वर्षां में निम्न और मध्यम आय वाले देशों में लोगों की मौतों में इजाफा हुआ है। इन देशों में 29500 करोड़ काम के घन्टे खोये है। मलेरिया जैसी बीमारी के कस्बों में लगभग 30 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। भारत उन पांच देशों में से एक है, जहां पिछले पांच वर्षां में अति संवदेनशील आबादी (एक साल से कम आयु के बच्चे एवं 65 साल से अधिक उम्र के बूढ़े लोगों की आबादी) सबसे अधिक खतरे में है। आंकड़े बताते हैं कि भारत ने वर्ष 2020 में 11300 करोड़ घन्टें से अधिक श्रम खोया है।
इससे पहले, डा .सूर्यकांत, विभागाध्यक्ष, रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग, केजीएमयू, जिनके नेतृत्व में धन्वंतरि दिवस के उपलक्ष्य में इस चर्चा का आयोजन हुआ था, ने संस्थान के इतिहास के बारे में विस्तार से पर्यावरण के संरक्षण और वायु प्रदूषण को कम करने के लिए स्वदेशी तरीकों और सरल प्रयासों के बारे में बताया।
डा. सूर्यकान्त जो कि ’’डाक्टर्स फॉर क्लीन एयर’’ संस्था के उप्र के प्रभारी हैं, ने कहा कि वायु प्रदूषण के कारण हमारे देश में 17 लाख लोगों की मृत्यु प्रतिवर्ष हो जाती है तथा पिछले वर्षों में रेस्पिरटेरी मेडिसिन कि विभाग में प्रदूषण के कारण होने वाले प्रमुख बीमारियां जैसे- अस्थमा, ब्रान्काइटिस, टी.बी., निमोनिया, फेफडे़ का कैंसर व एलर्जी के रोगियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। वायु प्रदूषण के प्रति जागरूक करने के लिए विभाग में वायु प्रदूषण से होने वाली बीमारियों के बारे में रेस्पिरटेरी मेडिसिन ओपीडी में लिखित जानकारी फ्लैक्स के रूप में लगाई गयी है। विभाग में तीन पार्क एवं एक आरोग्य वाटिका का भी निर्माण किया गया है। धन्वन्तरि दिवस के उपलक्ष्य मे डा सीमा जावेद को एक धन्वन्तरि जी की प्रतिमा स्मृति चिन्ह के रूप में प्रदान की गयी। संगोष्ठी की समाप्ति डा.आर.ए.एस. कुशवाहा के धन्यवाद ज्ञापन से हुयी। यह एक बहुत ही संवादात्मक सत्र था, जिसमे रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के चिकित्सक- डा संतोष कुमार, डा अजय कुमार वर्मा, डा आनन्द कुमार श्रीवास्तव, डा दर्शन कुमार बजाज, डा अंकित कुमार और रेजिडेंट डाक्टर्स ने सक्रिय रूप से भाग लिया और ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों के बारे में जानकारी प्राप्त की।